बाबा कहते हैं…भगवान के बिना भक्त और भक्त के बिना भगवान अधूरे!
मालिक के सच्चे भक्तों की कथा श्रवण करने से भी भक्ति पथ पर आगे बढ़ने की प्रेरणा मिलती है। मालिक और उनके प्रेमी भक्तों की कथा श्रवण कर सुखद अनुभूति होती है तथा भक्ति की शक्ति ज्ञात हो जाती है । मालिक को अपनी लीला करने के लिए भी तो सच्चे भक्तों की आवश्यकता होती है । मालिक और उनके भक्त एक दूसरे के पूरक होते है ।
"यदि भक्त नहीं होते तो भगवान कहां होते ? और यदि भगवान नहीं होते तो भक्त कहां होते ?" अर्थात एक दूजे के बिना दोनों ही अधूरे हैं। उसमें भी पहला स्थान भक्त का ही होता है जैसे दीन बंधु में दीन तो भक्त है और भगवान तो केवल बंधु है। दोनो आधे आधे हैं ना कोई कम न कोई ज्यादा। इसलिए भक्त के बस में सदैव ही मालिक रहते हैं। क्योंकि मालिक भी जानते हैं कि जैसे मैं इसके लिए आवश्यक हूं वैसे ही ये भी मेरे लिए बहुत ही आवश्यक है। इसलिए जयकारा भी लगता है " बोलो भक्त और भगवान की जय ।।"