बाबा कहते हैं…आराध्य को प्रसन्न करने के लिए किसी विशेष पूजा की नहीं, समर्पण और भाव काफ़ी
मालिक को प्रसन्न करने के लिए किसी विशेष पूजा या आराधना की आवश्यकता नहीं होती वो तो केवल भक्ति और भाव से ही प्रसन्न हो जाते हैं । उनका दर्शन और उनका साथ भी भक्ति और भाव से ही प्राप्त किया जा सकता है । जिनका अंतःकरण निर्मल होता है, मालिक में ही जिनका मन लगा होता है और जिनका उन पर ही पूर्ण विश्वास होता है तो उसके अटूट विश्वास और भाव को दृढ़ करने के लिए मालिक स्वयं ही दर्शन देने आते हैं और सदैव उसके साथ ही रहते हैं ।
जो सभी रूपों में उनका ही दर्शन करता है और अपने मुखारविंद से सिर्फ उन्हीं का नाम जाप तथा उन्हीं के नाम का जयकार किया करता है। जो सब चिंताओं को त्यागकर केवल उन्हीं का चिंतन किया करता है, जो उन्हीं की मौज में रहता रहता है तो मालिक से उसका रिश्ता भी अटूट हो जाता है।
जैसे वो मालिक के बिना नहीं पाता वैसे मालिक भी उसके बिना नहीं रह पाते। भक्ति भाव से ही मालिक को प्राप्त किया जा सकता है। इसलिए दिखावा नहीं सच्ची भक्ति करो, जिसे सिर्फ वो जान सके और तुम जानो बस ! दुनिया नहीं दुनिया का मालिक खुश हो ।
श्री साईं सबका सदा ही कल्याण करें।।