बाबा कहते हैं… तुम्हारा कोई भी भाव गुरु से छिपा नहीं होता है !
जो भाव, भक्ति, प्रेम और लगाव, दुःख, कष्ट, मुसीबत और बीमारी में मालिक/गुरु से होता है वो सुख आते या समय बदलते ही ठीक वैसे ही गायब हो जाता है जैसे गधे के सर से सींग। ऐसे ही लोग कृतघ्न और स्वार्थी कहे जाते हैं। तुम्हारा कोई भी भाव गुरु से छिपा नहीं होता है किंतु वो तुम्हारे बदले व्यवहार, भाव और मनोदशा से परिचित होते हुए भी कभी तुम्हारी अवहेलना नहीं करता ।
वो तो एक बार जिसको अपना बना लेता है कोई कितना भी बदल जाए, कोई कितनी भी उपेक्षा करे लेकिन वो उसके ऊपर क्रोध नहीं करते बल्कि उसकी मूर्खता पर हंसते हुए, उसकी को नजरंदाज कर, उस दया ही करते रहते हैं । उनका तो स्वभाव ही है प्रेम, दया, कृपा, करुणा और क्षमा करना। तुम अपने दिन भले ही भूल जाओ, गुरु को भले ही भूल जाओ किंतु वो तुम्हें कभी नहीं भूलते और ना ही किसी को जताते हैं ।
श्री साईं सबका सदा ही कल्याण करें ।।
— उमा शंकर गुरु जी/बाराबंकी