कण-कण, जन-जन में बाबा...एक साईं भक्त के जीवन की सच्ची कहानियाँ
यो मा पश्यति सर्वा च मयी पश्यति । तसहम् ना प्रंश्यामी सच में ना प्रश्यति ।।
(मैं सर्वत्र हूँ, सभी जीवों में हूँ, मेरी उपस्थिति को अनुभव करने के लिए सभी से सम्मानजनक व्यवहार करो।)
घर में बाबा की पूजा नियमित और विधिवत रूप से आरंभ हो गई। नियमतः और सामान्य ढंग से यह सब चल रहा था। एक रोज बृहस्पतिवार पूजा के बीच उठ कर सूर्य भगवान को जल चढ़ाने बाहर गया । क्या देखता हूं कि हमारे गेट के पास भूरे रंग की एक लावारिस कुतिया बड़ी विभोरमना होकर पूजा के कमरे की ओर देख रही है, मानो संगीत सुन रही थी।
मैंने इस तरफ ध्यान तो दिया लेकिन तत्क्षण यह भी लगा कि मैं कुछ ज्यादा ही सोच गया। यह भी तो संभव था कि भूखी होने के कारण खाने की तलाश में वह उधर आ निकली हो । उस दिन के बाद फिर वही देखा । देखा कि कुतिया वहीं गेट के बाहर बैठी थी।
अब तो हर रोज ऐसा होने लगा। रोजाना ही मेरा उस पर ध्यान जाता। फिर उसके साथ सफेद रंग का एक कुत्ता भी दिखाई पड़ने लगा। हम उन्हें खाना देने लगे। बदले में वे दिन-रात हमारे घर की रखवाली करते। मैंने तो उनका नाम भी धर दिया था। मादा चमेली बनी और नर श्वान भोलू । लगा कि ये नाम शायद उनको भी अच्छे लगने लगे थे। कम-से-कम पुकारे जाने पर हिल उठतीं उनकी दुमें तो इसी बात को बयां करतीं।
अब तो मेरी पत्नी भी इन श्वानों को खाना खिलाने में मेरा साथ देने लगी थीं। बाबा के प्रति दोनों श्वानों का अनूठा अनुराग दिखलाई पड़ता था। जब भजन गाए जा रहे होते, तो वे दोनों हमारे गेट के बाहर ही जमे रहते । भजन समाप्त होने पर ही वे वहां से हटते। उस समय तो खाना देखकर भी वे किसी दूसरे घर या पार्क की तरफ रुख नहीं करते । शीघ्र ही मैं जान गया कि हमारे घर आने का उनका एक खास ढर्रा था। तभी आते जब पूजा हो रही होती। घड़ी की सुइयों की भांति उनका नियम अडिग था। इसमें रत्ती भर भी अंतर नहीं आने पाता।
उन्हें देखना मेरी दिनचर्या में शुमार हो गया बल्कि कह सकता हूं कि मेरे दिन का एक अनिवार्य अंग बन गया। जिस दिन उन्हें नहीं देखता तो बेचैनी घेर लेती। पास-पड़ोस और घरों की लेनों में उन्हें खोजने के लिए अपना स्कूटर लेकर निकल पड़ता।
एक माह पश्चात् जिस अखबार में कार्य करता था, उसके कानपुर संस्करण के संपादकीय प्रमुख के तौर पर मेरा स्थानांतरण कानपुर हो गया। भोलू और चमेली जैसे वफादार हमें बाबा की कृपा से ही मिले और मन मानने लगा था कि मेरे कानपुर रहने की सूरत में भी मेरी पत्नी घर पर निपट अकेली नहीं होगी। घर पर उनकी चिंता करने वाला भी कोई होगा।
और इन दोनों ने लखनऊ में मेरे घर की सुरक्षा करके इस बात को साबित भी कर दिया। जैसा कि श्री साई सच्चरित्र में भी वर्णन मिलता है कि बाबा समस्या आने से पूर्व ही उसका समाधान ढूंढ़े रहते हैं। ठीक वैसे ही जैसे शिशु को जन्म देने से काफी पहले मां की छाती में दूध बनने लगता है।
क्रमश: कल...
(मोहित दुबे की पुस्तक साईं से साभार)