राम कृष्ण परमहंस से जुड़ी शिक्षाप्रद कहानियाँ : उत्तरदायित्व का निर्वाह
राम कृष्ण परमहंस के शिष्य मणि अक्सर अपनी घर गृहस्थी से ऊब जाया करते थे। एक बार उन्होंने स्वामी जी से कहा, "मैं तन-मन से ईश्वर की आराधना में जुट जाना चाहता हूँ।"
स्वामी जी ने उत्तर दिया, "तुम अपने परिवार की सेवा करके ईश्वर-सेवा ही तो कर रहे हो। तुम अपने संचय के लिए नहीं बल्कि उनके पालन- पोषण के लिए धन कमाते हो। यह भी सेवा ही है।" मणि ने अधीर होकर कहा, "कोई उनकी जिम्मेदारी ले ले तो मैं निश्चित होकर ईश्वर में मन लगा सकूँगा।"
स्वामी जी ने मणि को समझाया, "यह अच्छी बात है कि तुम्हारे मन में ईश्वर के लिए इतनी लगन है; मगर अभी तुम संसार के कर्तव्य पूरे करो और आध्यात्मिक साधना भी करो। जैसे-जैसे तुम्हारे प्रमुख कर्तव्य पूरे होते जाएँगे, वैसे-वैसे मन भी अध्यात्म की राह पर आगे बढ़ता जाएगा।"
इस प्रसंग से यह प्रेरणा मिलती है कि मनुष्य को अपने उत्तरदायित्वों और सांसारिक कर्तव्यों से विमुख होकर आध्यात्मिक नहीं होना चाहिए। अपने कर्तव्यों का निर्वाह भी ईश्वर-भक्ति ही है।
(डाक्टर रश्मि की पुस्तक रामकृष्ण परमहंस के १०१ प्रेरक प्रसंग से साभार )