नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: यहाँ का सब पानी, गंगाजल!
वृन्दावन आश्रम में वर्ष १९७३ की होली का पर्व मनाया जाना था । तब वहाँ मीठे पानी के लिये केवल एक कुआँ था हनुमान मंदिर के पार्श्व में। साथ में जो मीठा पानी अल्प काल के लिये नगर पालिका से उपलब्ध होता था वह एक कुँये में जमा होकर पम्प से टंकी में चढ़ाकर वितरित होता था परन्तु उसकी मात्रा इतनी कम थी कि उत्सवों में एकत्रित भक्तों के लिये नितान्त अपर्याप्त होती थी ।
अस्तु, बाबा जी (तब) वृन्दावनेश्वरी देवी मंदिर के निर्माण में रत श्रीराम मिस्त्री से कई बार कह चुके थे कि ऊपर वाली टंकी अपने आदमियों से बाहर के कुएँ से जल भरवा दे। किन्तु वह टालता रहा बाबा जी की बात को । एक दो दिन बाद भक्तगण एकत्र हो जाने को थे आश्रम में ।
उस दिन सुबह के समय बाबा जी बरामदे में तखत के ऊपर बैठे थे और मैं गोल खम्भे के सहारे खड़ा उन्हें निहार रहा था । इतने में श्रीराम मिस्त्री पास से गुजरा तो बाबा जी बोल उठे, “श्रीराम, हमने तुमसे कितनी बार कही पर तुमने टंकी में पानी नहीं भरवाया ।” अबकी श्रीराम ने भी उत्तर दे डाला, “महाराज, हम तो भरवा दें पर फिर आपके ही आदमी कहेंगे —" न तो उसकी बात पूरी हो पाई और न मैं ही (तब) उसकी बात का पूरा मतलब समझ पाया था, पर तभी महाराज जी ने मुझसे तत्काल कहलवा दिया, “श्रीराम, यहाँ का सारा जल गंगाजल है ।"
बस क्या था, सुनते ही महाराज जी उछल पड़े अपने स्थान पर और अपनी जंघा पर हथेली मारते चहकते हुए बोल उठे, “लो, बामण (ब्राह्मण) ने ही तुम्हें पस्त कर दिया । पस्त कर दिया ?” “हाँ महाराज जी" कहकर श्रीराम भी मुस्कुराने लगा । तब महाराज जी पुनः चहकते बोले, “तो अब भरवाओ पानी ।” और दोपहर तक बड़ी टंकी पूरी भर गई !! मुझ उत्तराखण्डी ब्राह्मण को ही माध्यम बना बाबा जी ने श्रीराम का संकोच दूर कर दिया । (मुकुन्दा)
ये थीं बाबा जी की प्रकृति के तत्वों, मनुष्यों के मन-मानस आदि पर नियंत्रण की दृष्टांत-रूप कुछ गाथायें । जड़ वस्तुओं एवं मनुष्य-निर्मित मशीनरी आदि पर भी उनकी मंशा शक्ति के प्रताप की कुछ गाथायें दशम पुष्पाञ्जलि में दी जा रहीं हैं ।