नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: महाराज जी में भेद दृष्टि थी नहीं
महाराज जी आंतरिक अथवा बाह्य जगत में जैसा भी परिवर्तन चाहते करने में समर्थ थे । वे अपने को किसी रूप में दर्शा सकते और अपनी लीलाओं में विभिन्न रूपों में भी दिखायी दिये । वे कहीं भी अपने को प्रकट कर सकते और क्षण मात्र में अदृश्य हो जाते थे । उनकी अवस्था के बारे में निश्चयात्मक रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता । उनकी लीलाओं से ऐसा भासित होता है कि वे इस जन्म से पूर्व भी नीब करौरी नाम और रूप या अन्य साधु सन्तों के रूप में कार्य करते रहे ।
इन कारणों से उनकी कोई पहचान नहीं हो सकती । लोग उनको केवल उनकी कृपा से ही जान पाये । उनका भौतिक परिचय इस सम्बन्ध में निरर्थक है । यथार्थ में वे एक उदाहरण मात्र हैं कि किस प्रकार अनन्त शक्ति स्थूल रूप धारण कर मनुष्यों के मध्य दीर्घ काल तक रह सकती है ।
बाबा आध्यात्मिक महामानव रहे । वे निःसन्देह वसुधैव कुटुम्बकम् के पोषक थे । उन्होंने विश्व में एक बृहत् भक्त परिवार का निर्माण किया जिसमें बाल-वृद्ध, स्त्री-पुरुष, सभी जाति, वर्ण और राष्ट्र के लोग हैं। अपने इस परिवार के ये सदा आदरणीय वृद्ध रहे । उनके इस विशाल एवं विश्व व्याप्त परिवार में उनका निजी लघु परिवार भी समाहित हो जाता है जिसका इस स्थिति में अलग से उल्लेख गौण हो जाता है और भ्रान्ति मूलक भी हो सकता है ।
बाबा में भेद दृष्टि थी नहीं, सम्भवतः इसी कारण से उन्होंने इस लघु परिवार की चर्चा भक्त समुदाय में कभी भी नहीं की । फलतः उनके निकटतम भक्तों को भी इसकी जानकारी नहीं रही । इस परिवार की जानकारी प्रथम बार भक्तजनों को बाबा की महासमाधि के अवसर पर हुई और उनके अन्तिम संस्कार में सभी ने मिल कर भाग लिया । इन दोनों परिवारों में प्रेमपूर्ण भाईचारे का सम्बन्ध होने से ये भिन्न नहीं एक ही प्रतीत होते हैं ।