नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: अंग्रेज अफ़सर, उसका बाबा को अपमानित करना और फिर उसका हृदय परिवर्तन होना

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: अंग्रेज अफ़सर, उसका बाबा को अपमानित करना और फिर उसका हृदय परिवर्तन होना

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इस बीच बाबा जी महाराज ऐटा, मैनपुरी, इटावा फतेहगढ़, आगरा आदि जिलों में भी भ्रमण करने लगे थे । वैसे भी इसके पूर्व से ही इन जिलों तथा आस-पास के अन्य जिलों-गाँवों से सैकड़ों भक्त नीब करौरी आते रहते थे बाबा जी की चमत्कारी लीलाएं सुनकर । किलाघाट (फतेहगढ़) आकर उनकी अन्य जिलों की यात्रायें और भी बढ़ गई घर-घर, गाँव-गाँव, शहर-शहर जाकर नई नई लीलाओं के साथ-साथ एक ही उद्देश्य लिए - दया एवं जन जन का कल्याण|

फतेहगढ़ किले में तब राजपूत रेजीमेन्ट का कमान्डिंग अफसर कर्नल मैकन्ना था जो बहुत सख्त था और विशेषकर भारतीय जोगी-साधूओं से बहुत चिढ़ता था । परन्तु फौज के सिपाही बाबा जी के (जो किले के बाहर अक्सर डेरा डाले रहते थे) भक्त हो चले थे बड़ी संख्या में और छिपकर उन्हें दूध, फल आदि भेंट करते रहते थे । पता नहीं किस मौज में बाबा जी ने कर्नल मैकन्ना का हृदय-परिवर्तन करने की मनसा बना ली, और एक दिन जब वह बाहर चला गया तो आप उसके कक्ष में जाकर उसके पलंग में लेट गये।

अर्दली, सिपाहियों आदि ने उन्हें बहुत रोका पर फिर भी आप डटे रहे। जब कर्नल आया और उसने देखा कि एक अधनंगा साधु उसके आराम की जगह लेटा है तो यह आग बबूला हो गया और बाबा जी की अंग्रेजी और हिन्दी में अपशब्दों से खूब भर्त्सना कर अपमानित किया (कहते है उसने बाबा जी को हन्टर भी लगाये ) परन्तु बाबा जी हँसते-मुस्कराते रहे उसकी इन हरकतों पर भी इतने अपनेपन से बाबा को हंसते देख कर्नल आश्चर्यचकित रह गया ।

बाबा जी ने अपनी मौज में कर्नल से कह दिया था - जनरल हो जायेगा । तब मैकन्ना को इस बात पर विश्वास नहीं हुआ। क्योंकि उस के ऊपर न मालूम कितने और अफसर थे जो जनरल बन्ने परन्तु बाबा जी का अमोघ वचन कैसे निरर्थक होता । द्वितीय विश्व युद्ध वह जनरल बनकर सुदूर-पूर्व की कमान सम्भालता हुआ जापानियों से लड़ा था।

पता नहीं बाबा जी की उस मुस्कुराहट में व उनके स्पर्श में कर्नल मैकन्ना ने क्या अनुभूति की कि तत्काल उसने अप्रत्याशित परिवर्तन आ गया !! उसने बाबा जी से क्षमा माँगी उनके लिए दूध-फल मँगा कर अर्पण किये साथ में हुक्म भी दे दिया । बाबा जी को किले के अन्दर आने दिया जाये और उन्हें फौज की तरफ से दूध-फल भी अर्पण किये जायें । इस घटना के बाद वह आजीवन तन-मन से उनका भक्त हो गया मैकन्ना पहला विदेशी भक्त बना महाराज जी का।

अपनी कमान संभाले जब वह अपनी फौज लेकर ट्रेन से सुदुरपा जाते समय इलाहाबाद स्टेशन पर रुका तो त्रिकालदर्शी बाबा जी में समय अकारण ही इलाहाबाद स्टेशन के प्लेटफार्म पर विराज गाड़ी छूटने के कुछ ही मिनटों पूर्व मैकन्ना की दृष्टि को अपनी ओर आकर्षित कर लिया । तभी वह बाबा जी को पहचान उनके पास दी दौड़ा आ गया और बिना हिचकिचाहट के बाबा जी के श्री-चरणों में गया।

उसके द्वारा अपनी स्थिति बताने के पूर्व ही महाराज जी बोल पड़े, जा, जा, तेरी गाड़ी जा रही है । जा, तुझे कुछ न होगा ।" के इस अमोघ आशीर्वाद के फलस्वरूप उस महायुद्ध में बड़े पैमाने पर नरसंहार के बावजूद और ब्रिटिश फौज के प्रारम्भ में बुरी तरह से पर भी मैकन्ना युद्धोपरान्त सकुशल इंग्लैंड लौट गया ।

इंग्लैण्ड लौटने के पूर्व सुदूर पूर्व के युद्ध में विवा सकुशल लौटे जनरल मैकन्ना की नियुक्ति अब मध्य पूर्व के युद्ध में हो गयी थी। बाबा महाराज के अमोघ आशीर्वाद के फला फल से प्रभावित हुआ मैकन्ना भारत छोड़ने के पूर्व महाराज जी के दर्शन पुनः करना चाहता था। इस संदर्भ में (मैकन्ना की कमान में सम्मिलित) कर्नल टी० डी० जोशी ने बाबा महाराज के सम्मुख ही नजरबाग (लखनऊ) में मैकन्ना को बाबा जी द्वारा पुनः दर्शन देने की लीला यूं सुनाई (जिसे बाबा जी भी बिना कोई प्रतिवाद किये चुपचाप सुनते रहे ।)

जनरल मैकन्ना अपनी फौज की चुनिंदा टुकड़ी के साथ विशेष सेना-गाड़ी से टुंडला स्टेशन पहुँच प्लेटफार्म पर बेचैनी से टहलने लगा मानो किसी को ढूँढ रहा हो। (उसका पूर्व अनुभव था कि बाबा जी यहीं आसपास फर्रुखाबाद, आगरा, शिकोहाबाद आदि शहरों में घूमते रहते हैं।) उसकी परेशानी देख मैंने भी उससे साधारण औपचारिकतावश पूछ लिया कि क्या बात है । तब उसने बिना किसी हिचकिचाहट के बताया कि भारत छोड़ने के पूर्व वह अपने गुरु बाबा नीब करौरी के दर्शन करना चाहता है।

सुनकर पहले तो मैं आश्चर्य में रह गया कि यह कैसे बाबा जी का भक्त बन गया !! (कर्नल जोशी स्वयं भी तो बाबा जी के भक्तों में थे और उनके आशीर्वाद से ही द्वितीय विश्वयुद्ध में सकुशल बने रहे।) फिर मैं भी स्टेशन में बाबा जी को बिना कोई आशा के ढूँढ़ने का नाटक करने लगा।

तभी मैंने देखा कि एक बेंच के नीचे सिर तक अपने को कम्बल में छिपाये कोई लेटा है । क्या बाबा जी हैं ? केवल महाराज जी की प्रेरणा से ही मैं बेंच के पास पहुँच गया और तभी अपना मुँह उघार कर बाबा जी मेरी तरफ देखने लगे अपनी सम्मोहिनी लिये मुस्कुराहट के साथ !! तब क्या था । इस अप्रत्याशित-अभूतपूर्व दर्शन को पा इधर मैं और उधर मैकन्ना विभोर हो कृतकृत्य हो गये । मैकन्ना ने महाराज जी को दण्डवत प्रणाम कर उनका आशीर्वाद पुनः प्राप्त कर लिया । (श्री केहर सिंह जी द्वारा वर्णित ।)

कहते हैं कि बाद में मैकन्ना बाबा जी को अपने साथ इंग्लैंड भी ले गया। परन्तु बाबा जी महाराज वहाँ से दूसरे-तीसरे दिन ही भारत को लौट आये ।

(प्रसंगवश - बाबा जी महाराज को स्व० रफी अहमद किदवई के भाई मक्का-मदीना भी ले गये थे !)

-- अनन्त कथामृत से साभार

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