नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: खाली नहीं करोगे तो भरोगे कैसे ?
बाबा पुनर्जन्म को मानते थे और बहुधा कहते थे कि हमारा इस जन्म में उन्हीं लोगों से संयोग होता है जिनसे हमारा सम्बन्ध किसी न किसी रूप में पूर्वजन्म में रहा और इस मिलन की एक अज्ञात पर निश्चित अवधि होती है। इसके बाद वियोग हो जाता है।
उदारता को वे जन्म जन्मांतरों के सुकृत्यों का परिणाम बताते और कहते स्वयं कष्ट उठाकर त्याग कर पाना कठिन होता है। ऐसा कार्य मनुष्य पूर्व जन्मों के सुसंस्कारों के कारण ही कर पाता है। बाबा की अपनी उदारता की कोई सीमा न थी। उनके प्रत्येक कार्य बड़े पैमाने में हुआ करते। देने में उन्हें विशेष आनंद आता।
अदेय उनके लिए कुछ भी न था। सबके मनोरथ पूर्ण करने में वे कल्पतरु थे। परन्तु हितकर इच्छा को ही महत्व देते, अहितकर को नहीं। उनके आश्रमों में हजारों दर्शनार्थी नित्य प्रसाद पाते। प्रत्येक व्यक्ति को उसके घर के लिए भी सुचारू रूप से बंधा प्रसाद लिया जाता। साधुओं को भोजन के अलावा धन और कंबल भी दिए जाते थे। बाबा यही कहते खाली नहीं करोगे तो भरेगा कैसे?
।। राम ।।
— सुभाष चंद यादव/करहल