नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: श्री सिद्धि माँ की दिव्यता के संकेत

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: श्री सिद्धि माँ की दिव्यता के संकेत

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सिद्धि माँ की दिव्यता के संकेत महाराज जी ने पूर्ण चंद्र चन्द्र जोशी को पहले से ही दे दिए थे। एक चांदनी रात, जबकि नैनीताल में पाषाण देवी मंदिर में बाबा पूर्ण चंद्र चन्द्र जोशी के साथ बैठे थे, उन्होंने झील के पार इंडिया होटल में श्री सिद्धि माँ के घर की तरफ इशारा किया। उनके मुहं से शब्द एक रहस्योद्घाटन की तरह निकले: "देवी कात्ययानी (नवदुर्गा का छठा रूप) वहां रहती है। अपनी तरफ इशारा करके उन्होंने कहा "उनके लिए ही हनुमान को आना पड़ा।"

महासमाधि लेने से पहले कैंची छोड़ते हुए महाराजजी ने श्री सिद्धि माँ से विदा लेते हुए कहा था, "माँ , जिस तरह से तुमने मेरी सेवा की है, किसी ने भी कभी ऐसी सेवा नहीं की और न ही भविष्य में कोई ऐसा करने में सक्षम होगा। अश्रुपूरित आँखों से बाबा ने श्री सिद्धि माँ को आशीर्वाद दिया और कहा, "जहाँ-जहाँ तुम रहोगी जो भी मंगलकारी और शुभ है तुम्हारे पास होगा।"

महाराज जी और श्री सिद्धि माँ के बीच संबंधों को शब्दों में वर्णित नहीं किया जा सकता है। शायद भगवान राम और उनके भाई भरत के बीच के प्यार से उनकी तुलना की जा सकती है। "रामायण" में, भरत ने अयोध्या का राजपाठ लेने से इंकार कर दिया था। इसके बजाय, उन्होंने भगवान राम की अनुपस्थिति में उनके खड़ाऊ राज सिंहासन पर रख कर उनके लिए राजपाठ को संभालना स्वीकार किया था। इसी तरह श्री सिद्धि माँ महाराजजी का कंबल जो उन्होंने कैंची से आखरी बार निकलते हुए पहना था उसी भाव के साथ रखती हैं मानो महाराजजी स्वयं ही कम्बल के रूप में उपस्थित हो।

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