नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएं: 'महाराज, अब तो आप ही अपना चमत्कार दिखाओ'
मेरा पुत्र अजय बी० एस० एफ० में असिस्टेन्ट कमान्डेन्ट की हैसियत से दिल्ली में नियुक्त था । वर्ष 1963 के जाड़ों में एक दिन वह अपनी रात की ड्यूटी हेतु अपने निवास से स्कूटर में निकला । चल चलते वक्त उसने कई सरकारी कागजात जिनमें दफ्तर के कुछ विशेष गोपनीय पत्र, उसके अपने १५०००) रु० के हिसाब के कागजात तथा अपने कमाण्डेन्ट के भी निजी दस्तावेज शामिल थे, ऐसे ही खुली स्थिति में स्कूटर की जालीदार डिक्की में डाल लिये थे ।
रात का वक्त, तेज हवा तथा स्कूटर के मार्ग में जहाँ तहाँ उचकने-उछलने के कारण कागजात धीरे-धीरे, उसके अनजाने में, डिक्की से बाहर निकल यत्र-तत्र उड़ते रहे । आफिस पहुँचने की जल्दी में तथा मस्तिष्क में आफिस में किये जाने वाले कार्यों के बारे में उलझे रहने के कारण अजय को इस घटना का कुछ भी पता न लग पाया।
परन्तु डिपो पहुँचकर उसने जो कागजातों को निकालने के लिये डिक्की में हाथ डाला तो वहाँ कुछ भी न था। घबराहट और चिन्ता में डूबा अजय उल्टे पाँव उसी मार्ग में स्कूटर दौड़ाने लगा जिससे वह आया था । परन्तु कहाँ मिलते वे कागज उस तेज हवा में न मालूम कहाँ उड़ चले होंगे।
निराश हो वह आफिस को लौट चला। मार्ग में पडते राजेन्द्रनगर थाने में उसने रिपोर्ट लिखा देना बेहतर समझा। उसकी मिलिटरी की वर्दी देख थानेदार ने रिपोर्ट तो लिख ली परन्तु स्पष्ट भी कर दिया कि उन खुले कागजों का इस तेज हवा में मिल पाने का कोई प्रश्न नहीं उठता ।
हताश हो अजय पुनः डिपो आ गया और फोन द्वारा कमाण्डेन्ट को भी घटना के बारे में सूचित कर दिया । कमान्डेन्ट के पास उसे धैर्य दिलाने के सिवा उस वक्त और क्या होता । बैठे बैठे अजय को प्रेरणा मिली कि एक बार फिर ढूँढा जाये और वह हनुमान चालीसा का पाठ करता उसी मार्ग पर फिर चल पड़ा । एक जगह उसकी गाड़ी स्वतः रुक गई ।
नीचे देखने पर एक लिफाफा-सा दिखाई पड़ा पर उसके कागजों में कोई लिफाफा तो था नहीं । वह आगे बढ़ गया, और अन्त में पुनः निराश हो लौट चला भरे मन से महाराज जी को याद करता कि, 'महाराज, अब तो आप ही अपना चमत्कार दिखाओ ।' और आगे बढ़ते उसका स्कूटर पुनः स्वतः ही उसी जगह फिर रुक गया जहाँ पहले उसने लिफाफा पड़ा देखा था !! अबकी उसने जो लिफाफा उठाया तो पाया कि उसमें कुछ कागजात भरे हैं !! हेड लाइट की रोशनी में देखा तो पाया कि ये तो उसी के कागजात हैं !!
और केवल कुछ ही कागज नहीं वरन एक एक कर सभी !! यही नहीं वरन वह लिफ़ाफा भी एक डोरे से लिपटा बँधा हुआ था (कि कोई कागज फिर न निकल जाये !!) मारे हर्ष के अजय की आँखें बरस पड़ीं । थाने पहुँचकर कागज दिखाते अजय ने जब अपनी रिपोर्ट वापस माँगी तो थानेदार भी इस अचम्भे को जान हतप्रभ रह गया । कमान्डेन्ट भी फोन से सूचना प्राप्त कर आश्चर्य चकित रह गया । 'जो सुमिरे तुमको उर माहीं, ताकी विपति नष्ट है जाहीं ।'
— सरस्वती साह