नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: लखनऊ के हनुमान सेतु मंदिर में स्थल-चयन
अपने निर्वाण के कुछ वर्ष पूर्व (नया मंदिर बनने के उपरान्त) महाराज जी ने लखनऊ में हनुमान मंदिर के ट्रस्टियों से मंदिर के पार्श्व में अपने लिये कुटी बनवाने को कहा था । अन्य स्थानों में तो भक्त लोग स्वयं ही ऐसी व्यवस्था महाराज जी की प्रेरणा से ही करते रहे थे पहले महाराज जी की कुटी बनती थी और फिर मंदिर । अतएव, महाराज जी की लखनऊ के लिए उक्त इच्छा की लीला एक आश्चर्यजनक रहस्य ही थी जिसका अर्थ उस समय जान पाना सम्भव न था ।
परन्तु ट्रस्टियों ने महाराज जी के लिये उस विशिष्ट स्थान पर कुटी इसलिए नहीं बनवाई कि आर्किटेक्टों की राय में उस स्थान पर भवन बनने से हनुमान मंदिर की भव्यता में अन्तर आ जायेगा !! अस्तु कुटी अन्य स्थल (मंदिर के पीछे) बनवाई गई ।
और जब १४ सितम्बर १९७३ को महाराज जी के पार्थिव शरीर के फूल को लिये अस्थि कलश लखनऊ लाया गया तो उसे भी तत्कालीन मुख्य प्रबन्धकर्ता ने मंदिर से दूर, एक कोने में (न कि उस स्थान पर जहाँ महाराज जी अपनी कुटी बनवाना चाहते थे) स्थापित कर ऊपर से चबूतरा एवं कमरानुमा समाधि-मंदिर बना दिया जहाँ केवल अनन्य भक्त ही हनुमान दर्शन के बाद मत्था टेकने जाते थे अन्य दर्शनार्थी नहीं ।
परन्तु महाराज जी की मनसा कौन टाल सकता था ? १५-१६ वर्ष बाद उसी मनसा-शक्ति ने अपना रूप लेना प्रारम्भ कर दिया । ट्रस्टियों में मंत्रणा हुई और उसी स्थान पर जहाँ महाराज जी अपनी कुटी बनवाना चाहते थे, महाराज जी का एक बहुत बड़े क्षेत्र में अत्यन्त विशाल एवं भव्य मंदिर बन गया, और अस्थिकलश भी अपने पुराने स्थल से हटकर वहीं आ गया जिसके ऊपर बाबा जी महाराज एक विशाल मूर्ति रूप में विराजमान हो गये, जिनके दर्शन हेतु अब वे सभी लोग भी आते हैं जो हनुमान जी के दर्शन को आते हैं !! कहाँ केवल कुटी और कहाँ विशाल मंदिर !!