नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: महाराज जी और वो सूखा पेड़ जो फिर हरिया उठा!
कैंची मंदिर एवं आश्रम के निर्माण काल में अपने प्रवास के मध्य बाबा जी आश्रम क्षेत्र की एक ऊँची-सी शिला पर विराजमान हो जाते थे और भक्त लोग शिला के नीचे समतल भूमि पर बैठ जाते । शिला से लग कर अतीस नाम के एक पहाड़ी वृक्ष का सूखा-सा ढूँठ (तना) खड़ा था बिना हरियाली के ।
इस वृक्ष की आयु वैसे ही बहुत कम होती है और यह वृक्ष-विशेष (तब) अपनी भी आयु पूरी कर चुका था । लोगों ने, इस भय से कि कभी यह दूंठ तेज हवा के झोंकों के कारण किसी के ऊपर गिर न पड़े, बाबा जी से कहा कि इसको कटवा दिया जाय । तो बाबा जी बोल उठे, नहीं, इसकी जड़ में जल चढ़ाओ । यह फिर हरा हो जायेगा ।"
लोग यही सोचते रहे कि वर्ष भर तो इतनी वर्षा हो जाती है इसके ऊपर पर यह हरा-भरा तो न हो पाया । परन्तु श्री माँ ने महाराज जी की उक्ति का मर्म समझ, पूर्णानन्द तिवारी जी की सहायता से उस दूंठ को गंगाजल से स्नान कराया और उसका आरती-पूजन भी किया । कुछ ही दिनों में वृक्ष की शाखायें फूटने लगीं, हरे पत्ते आने लगे !!
और बढ़ते बढ़ते वृक्ष शाखा प्रशाखाओं, हरे पत्तों से भरपूर हो गया !! आज (१६६४) यह वृक्ष अपने जीवन-दाता के उस शिला-आसन के ऊपर छत्र- रूप में लहराता रहता है - अपनी कृतज्ञता व्यक्त करते। (प्रसंगवश - इस वृक्ष की पत्तियों में श्री माँ कई भक्तों को राम-नाम के भी दर्शन करा चुकी हैं !)
(मुकुन्दा)