नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: शिमला में राम-हनुमान (संकट मोचन हनुमान मंदिर) की स्थापना
अपने शिमला प्रवास के मध्य महाराज जी तारा देवी (शिमला से कि०मी० दूर) नामक स्थान में भी जाते रहते थे । स्थान की रमणीयता देख हनुमान जी (बाबा जी) मगन हो गये और वहाँ भी रमना चाहा परन्तु जब तत्कालीन उप-राज्यपाल (स्व०) राजा साहेब भद्री को महाराज जी ने वह स्थान ऊपर सड़क से दिखाया तो वे अचकचा गये कि ऐसे छोटे एवं जंगलों से भरे स्थान में (जहाँ पहुँचने को केवल ऊबड़-खाबड़ पगडंडी थी) मंदिर कैसे बनेगा, और कि जनता भी इतनी दूर दर्शन हेतु कैसे आ पायेगी?
परन्तु महाराज जी की मंशा-शक्ति ने सब कुछ संभव कर दिया और बाबा जी के भक्त, श्री भगवान सहाय जी के राज्यकाल में मंदिर निर्माण का कार्य पूरा हो जाने पर हनुमान जी अपने स्वामी श्री सीता-राम जी तथा अपने अन्य स्वरूप, शंकर भगवान के साथ वहाँ यथा समय विराज गये अब तो २००-२५० फीट नीचे मंदिर तक जाने को मोटर मार्ग भी बन चुका है|
आवासीय भवन, स्कूल आदि भी बन गये हैं वहाँ अब महाप्रभु का विग्रह भी स्थापित करने की योजना बन चुकी है जिस हेतु मंदिर का शिलान्यास हो चुका है तथा जिस हेतु मूर्ति का निर्माण श्रीमती गिरिजा देवी, रानी साहेबा (भद्री) द्वारा कुछ वर्ष पूर्व ही करवा दिया गया था।
श्री राम नवमी के महापर्व को यहाँ २०-२५ हजार से ऊपर जनता राम-हनुमान भण्डारे का भोग प्रसाद पाती है और अब तो हर रविवार को भी ऐसे भण्डारे आयोजित होने लगे हैं ।
(कथा अनंतमृत के सम्पादित अंश)