नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ : जब काकड़ीघाट में प्रतिष्ठा के लिए आयी हनुमान जी की मूर्ति का किया वानर सेना ने स्वागत

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ : जब काकड़ीघाट में प्रतिष्ठा के लिए आयी हनुमान जी की मूर्ति का किया वानर सेना ने स्वागत

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कैंची धाम के मंदिरों के निर्माण के साथ की मां से २२ २३ कि०मी० दूर स्थित काकड़ीघाट नामक गाँव में भी महाराज जी ने भक्तों द्वारा हनुमान मंदिर की स्थापना करवा दी । यह स्थान पूर्व में श्री सोमवारी महाराज का लीला-क्षेत्र रहा है। उनके समय की धूनी एव शकर जी का छोटा-सा मंदिर अब भी सुरक्षित है जिसका जीर्णोद्धार भी श्री सिद्धी माँ ने करवा दिया है।

यहाँ मदिर बनवाकर बाबा जी महाराज ने सोमवारी बाबा की स्मृति को भी उनके भक्तों में पुनः जागृत कर दिया । इसी काकड़ीघाट में हनुमान मंदिर से कुछ दूरी पर स्थित शिव मंदिर में स्वामी विवेकानन्द को प्रथम बार भाव-समाधि लग जाने से एक नई आध्यात्मिक अनुभूति प्राप्त हुई थी ।

इस मंदिर में हनुमान मूर्ति के प्रतिष्ठापन से पूर्व महाराज जी ने एक विचित्र लीला रच डाली । पूर्व में यहाँ नदी पार मंदिर को जाने के लिये एक अत्यंत संकरा पुल था तथा पुल के उस पार से मंदिर तक जाने के लिये एक कच्ची तंग पगडंडी थी जो अक्सर टूट जाती थी । हनुमान जी की मूर्ति ६-७ फुट ऊँची भारी संगमरमर की है ।

जब इस मूर्ति को नदी मार्ग से उस पार ले जाया जा रहा था प्रतिष्ठापन हेतु तो न मालूम कहाँ से अनगिनत संख्या में बन्दर आकर पुल पर, पेड़ों पर, नदी के इस पार और उस पार एकत्र हो गये और अत्यन्त जोश-खरोश के साथ ची ची कर शोर मचाते रहे बडी देर तक मानो वानरी सेना अपने नायक का स्वागत कर रही हो ।

इतनी संख्या में ठीक उसी समय बन्दरों का वहीँ इक्ठे होकर यह आचरण अप्रत्याशित होने के साथ-साथ बाबा जी महाराज की सृजनात्मकता का एक अभूतपूर्व कौतुक था ! (जबकि उस स्थान में इतनी संख्या में बन्दर न तो कभी रहे और न अब दिखते है।)समुचित मार्ग न होने के कारण ६-७ फुट ऊँची संगमरमर की भारी मूर्ति भी स्वतः हल्की हो गई फिसलनदार पत्थरों से भरे नदी मार्ग से पार उतरने को !! (महाराज जी का एक और खेल !!)

(अनंत कथामृत के सम्पादित अंश)

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