नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जब माँ आनन्दमयी उनके दर्शन कर मगन हो उठीं
वर्षों पूर्व एक बार आनन्दमयी माँ तीर्थ यात्रा के मध्य अनेक तीर्थों और प्रमुख मंदिरों का दर्शन करतीं पूना पहुँची। वहाँ भक्तों ने उनसे वार्ताओं के मध्य सूचना दी कि पास में ही पुण्यस्थली की एक गुफा में एक प्रसिद्धि प्राप्त साधू महाराज अपनी भाव समाधि में ध्यानस्थ रहते हैं। सुनकर माँ को भी जिज्ञासा हो उठी, और वे उन साधू महाराज के दर्शनों को गुफा में पहुँच गईं।
तब ज्ञात हुआ कि साधू महाराज और कोई नहीं, स्वयँ बाबा नीब करौरी महाराज जी ही हैं !! माँ उनके दर्शन कर मगन हो उठीं। उन्होंने तब बाबा जी से वेदों तथा वेदान्त पर अनेक प्रश्न पूछे। दादा ब्रह्मचारी महोदय लिखते हैं कि महाराज जी ने तब विस्तार से हर प्रश्न का स्पष्ट उत्तर देकर माँ की जिज्ञासाओं की पूर्ण रूपेण तुष्टि कर दी !!
“जाकी सहज श्वास श्रुति चारी”, के लिये यह सब कौन बड़े कौतुक का विषय था । स्वयँ ही श्रुतियों-स्मृतियों, वेदों, पुराणों आदि के सार बाबा जी महाराज को विद्या-ज्ञान प्राप्ति हेतु किसी प्रकार की पढ़ाई-लिखाई की लौकिक क्रिया से सरोकार ही कब रहा ? राम और कृष्ण के तो गुरु थे, और उनके पठन-पाठन का भी उल्लेख है । परन्तु सदाशिव शंकर भगवान के तो न कोई गुरु थे और न पठन-पाठन की ही आवश्यकता थी । तब रुद्रावतार बाबा जी को भी गुरु एवं विद्याध्ययन की कैसे आवश्यकता पड़ती ?