नीम करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: भारत पर चीन का हमला
हमारे देश भारत पर चीन का अप्रत्याशित आक्रमण हो रहा था । एलेनगंज इलाहाबाद में एक गृहस्थ के घर एक तख़्त पर धोती पहने कम्बल ओढ़े विराजमान थे एक महानुभाव, विशाल शरीर, चौड़ा वक्षस्थल, आजानुबाहु, भरा बदन, उच्च ललाट, लम्बी नासिका, मोहक नेत्र, चित्ताकर्षक मन्द मुस्कान उनकी आनन्दमयी देह का यह रूप दर्शनीय था । उनके पैरों के पास बैठा यह चरणाश्रित दुःखी था उस दिन के दैनिक समाचार से । चीन तेजपुर से आगे घुसता चला आ रहा था ।
भारतीय सेना शत्रु का सामना नहीं कर पा रही थी । देश की इस भयावह स्थिति से प्रेरित होकर मैंने इस प्रसंग में उनसे अपने नैराश्यपूर्ण विचार व्यक्त किये । वे सहजभाव से बोले, "भारत ऋऋषि मुनियों का देश है । यह धर्म परायण है। कम्युनिज्म यहाँ ठहर नहीं सकता । चीन वापस लौट जायेगा ।" मैं मन ही मन यह सोच कर दुःखी हो गया कि इस संकटापन्न स्थिति में भी हम भारतवासी कितने उदासीन हैं ।
मैं तुरन्त विनम्रतापूर्वक बोल उठा, “बाबा ! यदि चीन को लौट ही जाना है तो निरर्थक आक्रमण क्यों कर रहा है ?” मेरे प्रश्न करते ही उन्होंने एक संक्षिप्त उत्तर दे दिया, "तुम्हें जगाने को” । मुझे सन्तोष नहीं हुआ, पर मैं मौन हो गया ।
इस वार्ता के तीसरे दिन प्रातःकाल अखबारों में बड़े-बड़े अक्षरों में प्रमुख समाचार यही था कि चीन की सेनाएँ शान्ति से लौट रही हैं और इसका कोई कारण समाचार पत्रों में व्यक्त नहीं किया गया था । मुझे बाबा की बात स्मरण हो आयी और मैं आश्चर्यचकित हो गया । इस घटना के बाद से भारत सरकार ने पश्चिमी, उत्तरी और पूर्वी सीमाओं की सुरक्षा के लिये जो ठोस प्रयास किये उससे बाबा की जगाने वाली बात भी समझ में आ गयी।