नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: जब महाराज जी ने नौकरी की अर्ज़ी गंगा में डलवायी और भक्त की लग गयी नौकरी!
मेरा छोटा भाई, शिवबोध सिंह, मेडिकल कालेज, आगरा से अपन कोर्स पूरा कर चुका था वर्ष १६३५ में ही । परन्तु कहीं भी उसकी नौकरी का जुगाड़ नहीं बैठ पा रहा था । मैं इस कारण चिन्तित था । एक दिन किलाघाट (फतेहगढ़) में महाराज जी की सेवा में रत था तो उन्होंने पूछा, “क्या चिन्ता है ?” मैंने उन्हें अपने भाई के बारे में बताया तो बोले, “लिख अर्जी अभी ।”
उस स्थान में न तो कागज उपलब्ध था और न कलम, पर उनकी आज्ञा पालन हेतु मैंने अपनी डायरी जेब से निकाली और उसमें से एक पन्ना फाड़कर उसी में लगी पेन्सिल से अर्जी लिख डाली । (पर किसको, कहाँ को तथा किस पोस्ट हेतु ?) अर्जी लिख कर उसे महाराज जी की तरफ बढ़ाया तो बोले, “मैं क्या करूंगा इसका ? डाल दे गंगा में ।” मैंने आज्ञानुसार वही कर दिया ।
पर वह तो बाबा जी द्वारा लिखवाई और गंगा जी में डलवाई गई अर्जी थी !! दो दिन में तैरकर कानपुर पहुँच गयी होगी, क्योंकि तीसरे ही दिन एलगिन मिल से भाई को तार मिल गया कि “फौरन चले आओ, मिल में डाक्टर का स्थान रिक्त है!!”
-- सूबेदार मेजर जगदेव सिंह, बेहटा रायबरेली (स्मृति-सुधा में।)