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नीब करौरी बाबा की अनन्यत कथाएँ: महाराज जी जिसे थाम लेते हैं, उसे छोड़ते नहीं
बाबा बहुधा कहते थे कि हम जिसका हाथ पकड़ लेते हैं फिर उसे कभी नहीं छोड़ते। भले ही वह हमें छोड़ दे। इसका तात्पर्य यह था कि वे जिसे भी एक बार अपनी शरण में ले लेते, उसके निरन्तर योग और क्षेम का उत्तरदायित्व स्वयं वहन करते और यदि खुशहाल होने पर वह व्यक्ति उन्हें भूल जाता तो इससे बाबा की कृपा पर कोई अंतर नहीं आता।
वास्तव में वह किसी कृतज्ञता के भूखे नहीं रहे। बाबा की इस बात में इतना बल है कि उनके महाप्रयाण के बाद भी लोगों का उन पर विश्वास बना है। जब कभी उनके भक्तों के जीवन में नैराश्यपूर्ण स्थिति पैदा हो जाती है तो उन्हें उनके बल का भरोसा होने लगता है और उनकी घबराहट विलीन हो जाती है। बाबा ने जाति-पांति और विभिन्न धर्मावलंबियों में भेद नहीं माना और सब पर उनकी कृपा समान रही।
!!राम!!
-निशांत पाण्डेय/ लखनऊ