नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: मसक समान रूप कपि धरी...महाराज जी बंद कमरे से ग़ायब!
महाराज जी को हनुमदावतार मानने वाले इंडिया होटल (नैनीताल) के मालिक परम भक्त श्री तुलाराम साह जी बाबा जी के उसी रूप का अनुभूति दर्शन प्राप्त करना चाहते थे जिस रूप में हनुमान जी ने लंका में प्रवेश किया था मसक समान रूप । साह जी की इस प्रबल अभिलाषा की पूर्ति हेतु बाबा जी ने इलाहाबाद में एक लीला रच डाली.
कृतिम रोष-झुझलाहट के साथ दादा से बोले, “दादा, हमें तंग कर दिया। एक दिन है सबने निकाल दो सबको बाहर कमरा बन्द कर बाहर से ताला लगा दो।” दादा ने ऐसा ही किया और लाइब्रेरी के छोटे कमरे में बाबा जी बन्द हो गये। बाहर से ताला लग गया और दादा ने (महाराज जी की उसे बाबा आज्ञानुसार) चाभी साह जी को सौंप दी चौकीदारी के लिये ।
भीतर की तरफ एक ही दरवाजा था लाइब्रेरी से बाहर निकलने को जी ने सिटकिनी चढ़ा भीतर - स्वयँ बन्द कर लिया । अब रह गई केवल एक सघन ग्रिलदार खिड़की हवा के लिये (जिसमें से केवल एक हाथ बाहर निकाला जा सकता था ।) बाहर की तरफ दरवाजे के सामने पुरुष वर्ग बैठ गया और भीतरवाले दरवाजे के बाहर महिला वर्ग कि बाबा जी निकलें तो दर्शन करें। बाबा जी के बिना चैन भी किसको था ?
बहुत देर हो गई। तभी (प्रभुप्रेरित) श्री माँ ने, जो बाहर आँगन की तरफ स्नानागार की गैलरी में गई थीं, बाबा जी को लम्बे लम्बे डग भरते हुए उत्तर-पूर्व की ओर एलनगंज मोहल्ले को भागते देख लिया । आकर उन्होंने सब से कहा, “यहाँ क्या बैठे हो ? महाराज जी तो चले गये हैं शायद मुकुन्दा के घर।” पर कौन विश्वास करता ? इधर से ताला और उधर से सिटकिनी। और फिर किसी अन्य ने भी तो नहीं देखा था। राय हुई ताला खोला जाये।
पर आज्ञा उल्लंघन का भी डर था। फिर खिड़की की ओर से रब्बू ने देखा अन्दर तो महाराज जी गायब !! ताला खोला गया तथा भीतर सिटकिनी भी देखी गई। वह यथावत चढ़ी हुई थी !! अब तो बाबा जी के निकलने का एक ही रास्ता रह गया था – खिड़की की ग्रिल के बीच से घर कर !! साधारण दृष्टि से अदृश्य अवस्था में मसक समान रूप।
तब तक बाबा जी मेरे घर पहुँचकर सीढ़ियों में बैठ गये । सभी भागकर वहीं आ गये और वहीं भी, तथा ऊपर आकर भी दरबार लग गया। सब कुछ देख-समझ साह जी के हृदयोद्वार फूट लिये, “अब कोई शंका नहीं रह गई, महाराज ।” उपरान्त, उपलक्ष में, भण्डारा भी हो गया वहीं । (मुकुन्दा)