नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ : अपनी एक कैनेडियन  भक्त की माँ जो उन्हें बहुत कोसती थी को विदेश में बचाया

नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ : अपनी एक कैनेडियन भक्त की माँ जो उन्हें बहुत कोसती थी को विदेश में बचाया

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कैनेडियन महिला, सुनन्दा मार्कस बाबा जी महाराज की बड़ी भक्त है। यूँ तो उसका पति, देवर, श्वसुर आदि भी बाबा जी के भक्त हैं. पर सुनन्दा का विशेष ही तौर पर महाराज जी से लगाव रहा । परन्तु एक भारतीय साधू पर इस कदर समर्पित होने के कारण उसकी माँ (एक अमेरिकन महिला) उससे तो चिढ़ने ही लगी थी, उससे भी अधिक बाबा महाराज से चिढ़ गई कि उसकी लड़की पर कैसा जादू कर दिया है इस भारतीय साधू ने ।

अपने रोष में वह बाबा जी महाराज को गालियाँ भी देती रही । सब कुछ जानते हुये भी त्रिकालदर्शी बाबा जी उसके इस व्यवहार के प्रति सदा ही निरपेक्ष रहे । (याद तो करती है मेरी, गाली - देकर ही सही, कुढ़ कर ही सही ।)

इसी दौरान सुनन्दा की माँ विदेश यात्रा पर निकलीं। अन्य स्थानों में होते हुये वे डेनमार्क आ पहुँची। इधर उनकी थैली भी सिकुड़ चुकी थी। और कुछ अर्थाभाव उन्हें सताने लगा था। साथ में वे बीमार रहने लगी थीं और हालत बिगड़ते-बिगड़ते एक रात वे अपने होटल के कमरे में अचेतावस्था में जाने लगी ।

उनमें इतनी भी शक्ति नहीं रही कि उठकर होटल मैनेजर से इस विषय में सहायता के लिये भी कह सकें। उन्हें परदेश में इस एकान्त कमरे में अपनी मृत्यु साफ साफ दिखाई देने लगी।

मेरी कार बाहर खड़ी है आप चलिये, आप को हवाई अड्डे छोड़ दें । आपका जहाज कुछ दर बाद न्यूयॉर्क को रवाना हो आपका टिकट बन चुका है

इस असहाय अवस्था में रोते हुये वे प्रलाप करने लगीं "ओ सुनन्दा के बाबा! कहाँ हो तुम ? मेरी सहायता क्यों नहीं करते", आदि आदि। तभी कुछ देर बाद बन्द दरवाजे से ही डाक्टर के वेष में एक हबशी आ पहुँचा उनके पास। उसने पहले उन्हें इंजेक्शन दवा आदि सब दी जिससे इन्हें बहुत आराम हो गया और ये सो गई । इन्हें यह भी होश नहीं रहा तब कि उस डाक्टर से पूछे कि तुम्हें किसने भेजा ? और तुम्हारी फीस कितनी है? तथा, तुम मेरे बन्द कमरे में कैसे घुस आये ? आदि।

(बाबा जी ऐसी लीलायें करते वक्त मन-बुद्धि को अपने पास कैद भी तो कर लेते थे) सुबह सूर्योदय के पूर्व ही वही व्यक्ति पुनः आ गया और इनसे बोला, "मेरी कार बाहर खड़ी है आप चलिये, आप को हवाई अड्डे छोड़ दें । आपका जहाज कुछ दर बाद न्यूयॉर्क को रवाना हो आपका टिकट बन चुका है।"

और ऐसा कहते उसने मुख्तसिर रूप मे इनका सामान पैक किया और इन्हें अपनी कार में बैठा कर ले चला। य | फिर भूल गईं पूछना कि, “तुम्हें कैसे मालूम कि मैं न्यूयार्क जाना चाहती हूँ”, और कि, "होटल का हिसाब कैसे हुआ, किसने किया ?" हवाई अड्डे पर इन्हें जहाज में बिठाने के पूर्व इनका टिकट तक देकर वह डाक्टर कार में बैठा और चला गया - होलैंड से न्यूयार्क तक के लम्बे सफर के हवाई किराये के हिसाब किताब के बारे में बिना कुछ बात किये !॥ बाबा जी की इस लीला का वर्णन मुझे सुनन्दा ने स्वयं कैंची धाम में सुनाया । (केहर सिंह)

(अनंत कथामृत के सम्पादित अंश)

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