नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: मेरा विश्वास, महाराज जी का प्रताप और बालक के चर्म रोग का ठीक होना!
मेरा सदा ही विश्वास रहा है कि महाराज जी के पावन आश्रम की हर वस्तु में स्वयँ महाराज जी की शक्ति, उन्हीं का परम प्रताप व्याप्त रहता है ।
वर्ष १९८० में मेरे छोटे लड़के को एक ऐसी बीमारी ने घेर लिया जिसका निदान कोई डाक्टर न कर पाया । कोई चर्म रोग बताता तो कोई दाद-खुजली और कोई बिगड़ा हुआ खसरा ।
किसी भी इलाज से कोई लाभ न हुआ और मर्ज दिनों दिन बढ़ता ही गया । इस कारण लड़का सूखता ही गया और उसकी तकलीफ की तड़पन बढ़ती गई । तब मैं अल्मोड़ा में थी । एक दिन जब मुझसे रहा नहीं गया तो मैं अपनी सास जी से बोली, "इसका इलाज मैं अब स्वयँ करुँगी ।" उन्होंने पूछा, "क्या करोगी ?” मैंने छोटा सा उत्तर दे दिया, “आप खुद देखियेगा ।" और लड़के को लेकर मैं सीधे कैंचीधाम पहुँच गई जिसकी प्रेरणा महाराज जी ने मुझे मेरे अन्तर्द्वन्द के बीच दी थी ।
अक्टूबर का महीना था और ठंड भी बहुत थी । परन्तु निर्भय होकर मैं लड़के को लेकर सीधे आश्रम के पार्श्व में बहती उत्तर वाहिनी गंगा जी के किनारे पहुँची और जमकर उसे गंगा स्नान कराया और फिर वैसी ही नग्नावस्था में उसे आश्रम के हवनकुण्ड के पास लाकर उसके सारे शरीर में भस्मी लपेट दी । तदुपरान्त उसी अवस्था में लाकर मैंने उसे श्री माँ के चरणों में पटक दिया।
चौंककर जब श्री माँ ने पूछा कि यह सब क्या है तो मैंने उन्हें सारा हाल आद्योपांत बता दिया । श्री माँ ने लड़के के सर पर हाथ फेरा और कहा, “जाओ, इसे कपड़े पहनाकर दोनों प्रसाद पाओ ।” तब माँ-बेटे ने जमकर प्रसाद पाया, गंगाजल पान किया और शाम को अल्मोड़ा पहुँच गये ।
अपने पोते को एकदम स्वस्थ-नीरोग देखकर सास जी भी अचकचा गई - "कैसे ठीक हो गया यह इतनी जल्दी ?” प्रश्न का क्या उत्तर होता ?
- पुष्पा शाह