नीब करौरी बाबा की अनंत कथाएँ: अनपढ़ बालक के मुख से गीता के अध्याय सुनवाकर सबको किया अच्चम्भित
भगवान सिंह (सम्प्रति लखनऊ हनुमान सेतु के मंदिर में पुजारी) को, जब वह एक अनपढ़ अनाथ-सा बालक था छोटी उम्र का, (तभी) महाराज जी ने अपनी शरण में ले लिया था । कुछ काल बाद उसका उपनयन संस्कार भी कर दिया था बाबा जी ने और उसे वृन्दावन आश्रम के हनुमान मंदिर में पुजारी का काम भी सौंप दिया । सरल बालक बड़ी लगन से हनुमान जी की सेवा करने लगा । परन्तु कुछ लोग उसे ऐसा काम सौंपे जाने पर नाखुश थे कि एक तो ठाकुर, दूसरे अनपढ़ ।
मंदिर श्री मंगतूराम जैपुरिया का बनाया हुआ था और जब बाबा जी वृन्दावन आश्रम से अन्यत्र चले गये तो लोगों ने जैपुरिया जी के कान भर दिये उसके खिलाफ । उन्होंने भवानी सिंह को हटा दिया। अनाथ भगवान सिंह रुआँसा हो गया कहाँ जाये अब ? बाबा जी महाराज को याद करता रहा भूखा-प्यासा भवानी (भगवान सिंह) और तभी बाबा जी आ गये !!
आर्त पुकार तो कहीं भी सुन लेते थे सरकार । भवानी को दम-दिलासा दिया, खाना खिलाया अपने कम्बल से !! सूचना पाकर जैपुरिया भी आ गये। महाराज जी ने किसी से कुछ न कहा। साधारण-सी बातें करते रहे। जैपुरिया जी का परिवार भी आ गया। जब कुछ मजमा इकट्ठा हो गया तो महाराज जी ने जैपुरिया जी से पूछा, “तूने इसके (भगवान सिंह के) मुँह से गीता सुनी है ?”
सभी आश्चर्यचकित कभी महाराज जी का मुँह देखें और कभी भवानी का !! भवानी के भी कुछ समझ में न आया कि महाराज जी कह क्या रहे हैं। अब सबके मन में यही हुआ कि आज देखें महाराज जी क्या खेल खेलेंगे। किन्हीं किन्हीं के मन में तो आज बाबा जी के प्रति शंका भी उठी कि एक अनपढ़ के लिए बाबा जी क्या कह रहे हैं?
तभी जैपुरिया जी भी बोल उठे, “नहीं महाराज ।” मन में तो था कि आज इस अनपढ़ को पुजारी के पद से हटा देने का उनका कदम पक्का हो जायेगा । “कौन सा अध्याय सुनेगा ?” “ग्यारहवाँ, महाराज ।” बाबा जी ने भवानी को अपने पास बुलाया और कहा, “सुना बेटा ग्यारहवाँ अध्याय ।”
भवानी के काटो तो खून नहीं । तभी बाबा जी ने हल्के-से अपना पाँव आगे बढ़ा पैर का अंगूठा भवानी की त्रिकुटी में लगा दिया और अपना कम्बल ठीक करने की-सी प्रक्रिया में उसके सिर को आधा ढक दिया कम्बल के छोर से । भवानी चालू हो गया ग्यारहवें अध्याय के पाठ में !! पहले तो लोग चौंके । फिर संगीतमय, शुद्ध उच्चारण-युक्त पाठ सुनते सुनते सबकी आँखें मुँद-सी गईं और नम भी हो चलीं ।
खेल समाप्त हुआ । जैपुरिया जी समझ गये कि महाराज जी द्वारा की गई नियुक्ति में उन्होंने रोड़ा अटकाया था । उसकी माफी माँगी और भवानी को पुजारी बने रहने देने की प्रार्थना की, परन्तु महाराज जी ने कुछ काल बाद भवानी का तबादला लखनऊ मंदिर में कर दिया ।