परोपकार के समान कोई धर्म नहीं है और दूसरों को पीड़ा पहुंचाने के समान कोई अधर्म नहीं…
"परहित सरिस धर्म नहिं भाई।
पर पीड़ा सम नहिं अधमाई।।"
अर्थात-: परोपकार के समान कोई धर्म नहीं है और दूसरों को पीड़ा पहुंचाने के समान कोई अधर्म नहीं। संसार में वे ही सभ्य सुसंस्कृत मनुष्य हैं, जो दूसरों के हित के लिए अपना सुख छोड़ देते हैं। एक कहावत है कि -"पुष्प इकट्ठा करने वाले हाथ में कुछ सुगंध हमेशा रह जाती है।" जो लोग दूसरों की जिंदगी रोशन करते हैं, उनकी जिंदगी खुद रोशन हो जाती है।
परहित व परोपकार का कार्य करने वाले व्यक्ति हमेशा हर परिस्थिति में खुश रहते हैं और अब तो वर्तमान के मनोवैज्ञानिकों का भी मानना है कि जो हमेशा दूसरे के हितों की चिंता करते हैं, त्याग व परोपकार के कार्यों में संग्लन रहते हैं वे ज्यादा प्रसन्न व सुखी पाए गए हैं।
और सच मायने में लेने से ज्यादा देने का सुख बड़ा सुख है, देने वाला ही तो दाता कहलाता है। और यह ईश्वरीय गुण भी हैं। आपने भी कभी अनुभव कियें होंगे कि जब आप किसी के लिए कुछ अच्छा कर रहे होते हैं तो अंतरात्मा काफी प्रसन्न होती और काफी संतोष व आनंद का अनुभव होता है।
सड़क पर पड़े सिसकते व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाना हो या भूखे-प्यासे-बीमार की आहों को कम करना, अन्याय और शोषण से प्रताड़ित की सहायता करना हो या सर्दी से ठिठुरते व्यक्ति को कम्बल ओढ़ाना, किन्हीं को नेत्र ज्योति देने का सुख हो या जीवन और मृत्यु से जूझ रहे व्यक्ति के लिए रक्तदान करना हो या फिर किसी बुजुर्ग को रोड पार करवा देना, किसी रोते हुए बच्चे को एक चॉकलेट दे देना, किसी नंगे पैर चलते हुए गरीब राहगीर के पैरों में चप्पल पहना देना, या जीवन की कठिनाई व कष्टों से हारते हुए व्यक्ति में साहस भर देना, या फिर किसी दुखी व्यक्ति से दो शब्द सकारात्मकता व प्रेम के बोलकर उसमें आत्मबल जगा देना और किसी भटके हुए व्यक्ति को ईश्वर के सम्मुख कर देना, कभी किसी अनजान परेशान दुखी व्यक्ति के लिए परमात्मा से प्रार्थना कर देना आदि ये सभी कार्य जीवन के वे सुख हैं, जो इंसान को भीतर तक खुशियों से सराबोर कर देते हैं।
आप उन पलों को याद कीजिए जब आपने किसी के लिए कुछ सहयोग व त्याग किया होगा तो उस समय आपका दिल कितनी अपार खुशियों से भर गया होगा। सही मायने में परोपकार से मिलने वाली प्रसन्नता तो एक चंदन है, जो दूसरे के माथे पर लगाइए तो आपकी अंगुलियां अपने आप महक उठेंगी।। तो आइए हम सब भी छोटे-छोटे परोपकार के कार्य निरंतर प्रतिदिन करते रहें।
— मनीष मल्होत्रा/बाराबंकी