मां को समर्पित एक रचना…

मां को समर्पित एक रचना…

मेरी माँ- स्व डॉ.(श्रीमती) उमा अग्रवाल M.B.B.S. (5-4-1935-----16-1-2022)
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सुख में दुख में हर हालत में

सदा रही मुस्काती मां

खेल जान पर दुनिया रचती

फिर उसमें रम जाती मां

सुबह उठी थी कब सोई थी?

बच्चों में ही तो खोई थी,

दिनभर चक्की जैसी चलकर

बहुत थकी पर ना रोई थी!

झाड़ू पौछा चौंका चूल्हा

कभी नहीं सुस्तानी मां

सुख में दुख में हर हालत में

सदा रही मुस्काती मां

खेल जान पर दुनिया रचती

फिर उसमें रम जाती मां

बीमारी में भी हंसती है

नटनी जैसी वह नचती है

खुद की पीर भूला बच्चों में

जान तो मां की ही बसती है

और जादू झप्पी देकर

नेह सदा बरसाती मां

सुख में दुख में हर हालत में

सदा रही मुस्काती मां

खेल जान पर दुनिया रचती

फिर उसमें रम जाती मां

छाती से अमृत बरसाती

बच्चों को बलवान बनाती

खुद जलकर जग रोशन करती

मां है ऐसे दिये की बाती

भरा पेट बच्चों का उसने

खुद भूखी सो जाती मां

सुख में दुख में हर हालत में

सदा रही मुस्काती मां

खेल जान पर दुनिया रचती

फिर उसमें रम जाती मां

बेबस और लाचार रही पर

कोना पकड़ा पड़ी रही घर

कभी नहीं धिक्कार कहा था

रहो सुखी कहती थी दिनभर

मेरे बच्चे सबसे अच्छे

दुनिया से बतयाती मां

सुख में दुख में हर हालत में

सदा रही मुस्काती मां

खेल जान पर दुनिया रचती

फिर उसमें रम जाती मां

जन्नत है उसके पांवों में

पले बढ़े जिसकी छांवो में

जिस दिन चली गई दुनिया से

पल पल भटकोगे राहों में

अंधियारों उजियारों में

सतपथ सदा बताती मां

सुख में दुख में हर हालत में

सदा रही मुस्काती मां

खेल जान पर दुनिया रचती

फिर उसमें रम जाती मां

— अजय अग्रवाल, नयी दिल्ली

(लेखक सुप्रीम कोर्ट के नामी वकील हैं)

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