यूपी के बाहर फिसड़ी साबित हुए अखिलेश, सपा भी अपनी छाप छोड़ने में रही नाकाम!

यूपी के बाहर फिसड़ी साबित हुए अखिलेश, सपा भी अपनी छाप छोड़ने में रही नाकाम!

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लखनऊ, दिसंबर 4 (TNA) उत्तर प्रदेश के दो प्रमुख राजनीतिक दल समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) चार राज्यों के हुए विधानसभा चुनावों में कोई करिश्मा दिखा सके. मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना में भाजपा और कांग्रेस में ही सीधा चुनावी संघर्ष हुआ. सपा ने मध्य प्रदेश ही कुछ सीटों पर अपनी मौजूदगी जताने का प्रयास किया,लेकिन अखिलेश यादव का पीडीएफ (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) फार्मूला पूरी तरफ से फेल हो गया.

यही हाल बसपा का भी मध्य प्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़ में हुआ, इन तीनों ही राज्यों में बसपा अपनी राजनीतिक ताकत का एहसास कराने में सफल नहीं हुई. इन विधानसभा चुनावों में सपा-बसपा के फिसड़ी साबित होने पर यह कहा जा रहा है कि यूपी के बाहर यह दोनों ही दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को चुनौती देने में सक्षम नहीं हैं, अब यह साबित हो गया है. इसलिए बेहतर है कि यह दोनों ही दल यूपी में अपनी राजनीतिक ताकत को बढ़ाने पर ध्यान लगाएं.

अखिलेश का पीडीए फार्मूला हुआ फेल

मध्य प्रदेश के विधानसभा चुनाव परिणाम आ गए हैं, इस राज्य में अब भाजपा सरकार बनाने जा रही है. अखिलेश यादव ने विधानसभा चुनाव में पूरा जोर लगाया था. सूबे की 69 सीटों पर सपा के प्रत्याशियों ने चुनाव लड़ा था, लेकिन पार्टी का कोई प्रत्याशी चुनाव नहीं जीत सका. हालांकि अखिलेश यादव ने एमपी में पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक फ्रंट और जातीय जनगणना के मुद्दे के जरिए वोटों को एकजुट करने का संदेश दिया था. एमपी में सपा मुखिया अपनी इस नई पॉलिटिक्स को नेशनल लेवल पर स्थापित करने की कोशिश करते, लेकिन मध्य प्रदेश की जनता ने उनकी पीडीए पॉलिटिक्स के साथ-साथ जातीय जनगणना की मांग को भी खारिज कर दिया.

हां यह जरूर हुआ कि एमपी में सपा प्रत्याशियों ने कांग्रेस को नुकसान जरूर पहुंचाया. सपा प्रवक्ता आशुतोष वर्मा के अनुसार अगर सपा और कांग्रेस ने सीटों का तालमेल कर चुनाव लड़ा होता तो जरूर स्थितियां बदलती. आशुतोष यह भी कहते हैं कि अब अगर भाजपा को रोकना है तो इन चुनाव परिणामों से सबक लेते हुए लोकसभा चुनाव इंडिया गठबंधन के दलों को मिलकर लड़ने पर विचार करना चाहिए.

चुनाव परिणाम का संदेश

विधानसभा चुनावों में जनता द्वारा दिया गया फैसला यह बताता है कि मायावती की राजनीति को जनता पसंद नहीं कर रही हैं, उन्हे किसी ना किसी दल के साथ चुनावी तालमेल कर चुनाव मैदान में उतरना होगा. अन्यथा अकेले चलते हुए वह हर चुनाव ऐसे ही हारेंगी. कुछ ऐसा ही संदेश सपा मुखिया अखिलेश यादव के लिए भी जनता ने दिया है.

मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्पनाथ का दंभ और राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलौत का सचिव पायलट से साथ चुनाव के दौरान भी चला विवाद कांग्रेस के सत्ता से बाहर होने का वजह बना बताया जा रहा है. राजनीति के जानकारों का कहना है कि कांग्रेस के क्षत्रपों की तानाशाही भी कांग्रेस की पराजय की वजह बनी, इसलिए बेहतर हो कि अब इंडिया गठबंधन के दलों को साथ लेकर चुनावी रणनीति बने तभी भाजपा से मुक़ाबला कर सकेगी.

-- राजेंद्र कुमार

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