9 करोड़ से अधिक अतिपिछड़े आज भी आरक्षण में न्याय पाने से वंचित

9 करोड़ से अधिक अतिपिछड़े आज भी आरक्षण में न्याय पाने से वंचित

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1989 में मण्डल कमीशन तथा 73वे व 74वे संविधान संशोधन लागू होने के 3 दशक बीत जाने के बाद भी अति पिछड़ों को न्याय नहीं मिल पाया है। इन तीन दशक में पिछड़ी जातियों में अति पिछड़ों के नाम पर 50 से अधिक संगठन बन चुके हैं। हर संगठन बनाने वाले नेता अपनी-अपनी जाति की संख्या बढ़ा-चढ़ा कर निजी स्वार्थ के लिए सत्ता से सौदा करते हैं।

चुनावी गठबंधन करते हैं और सत्ता का सुख भोगते हैं। जब सत्ता सुख में बाधा आती है तो इन नेताओं को जाति याद आने लगती है। 2022 विधानसभा चुनाव नजदीक होने के कारण अतिपिछड़ी जातियों के नेता अधिकार देने की मांग को लेकर घड़ियाली आंसू बहाना शुरू कर दिए हैं। इनमें ओमप्रकाश राजभर हो संजय निषाद व अन्य पिछड़ी जातियों के नाम पर संगठन बनाने वाले दूसरे नेता सभी का स्वार्थ जुड़ा हुआ है।

रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अति पिछड़ों को न्याय दिलाने की पहल मुख्यमंत्री रहते हुये 2002 में की थी। सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक रूप से पिछड़े, दलित एवं पिछड़ों को न्याय दिलाने के सामाजिक न्याय समिति का गठन किया और 27% आरक्षण में अति पिछड़ों को आरक्षण देने की व्यवस्था की। इनमे 3 कैटेगरी बनाई गयी जिनमे सबसे प्रभावशाली यादव जिनकी आबादी पिछड़ों में 19% है उन्हें 5%, आठ पिछड़ी जातियां जिनकी आबादी 8% थी उन्हें 9%, अत्यधिक पिछड़ी 70 जातियां जिनकी आबादी 62% थी उन्हें 14% आरक्षण देने की व्यवस्था की थी लेकिन इसी तरह से दलितों में महादलित का कोटा निर्धारित किया गया।

राजनाथ सिंह द्वारा गठित सामाजिक न्याय समिति मे पिछड़ों के प्रतिशत का अधिकृत आकड़ा
राजनाथ सिंह द्वारा गठित सामाजिक न्याय समिति मे पिछड़ों के प्रतिशत का अधिकृत आकड़ा

जिसमे राजनीतिक एवं आर्थिक ताकतवर चामर, धुसिया, जाटव को 10% तथा 65 कमजोर दलित जातियों को 11% आरक्षण की व्यवस्था की गयी लेकिन मायावती और मुलायम सिंह यादव के दवाब में भाजपा के कुर्मी, यादव व अन्य नेताओं ने इसे लागू नहीं होने दिया। दो दशक के अति पिछड़ों को न्याय देने की सियासत हो रही है।

नरेन्द्र मोदी जो अति पिछड़ी जाति से आते है उनके प्रधानमंत्री बनने के बाद अति पिछड़ों में न्याय को लेकर भरोसा जगा था और लामबंद होकर भाजपा को 2014, 2017, 2019 में एकतरफा वोट दिया और प्रदेश में भाजपा को अप्रत्याशित सीटे मिली। 2017 में केशव प्रसाद मौर्या का चेहरा अति पिछड़ों में मुख्यमंत्री के रूप में दिखाया गया जिसके कारण एकजुट अति पिछड़ों ने 312 सीटे दिलाने में अहम् भूमिका अदा की। लेकिन केशव मौर्या की जगह योगी आदित्यनाथ को कुर्सी सौपी गयी।

इसके बाद भी लोगों को लग रहा था कि नरेंद्र मोदी अति पिछड़ों को न्याय दिलाएंगे। 5 वर्ष योगी सरकार के भी होने जा रहे हैं लेकिन अति पिछड़ों को न्याय नहीं मिली। इस बीच गैर यादव, पिछड़ें नेता के रूप में ओम प्रकाश राजभर, संजय निषाद, अनुप्रिया पटेल सहित कुम्हार, प्रजापति, कुशवाहा, पाल, बघेल, लोधी, विश्वकर्मा, मौर्या, माली, सैनी, लोनिया, कहार आदि अतिपिछड़ी जातियों के नाम पर 50 से अधिक संगठन और नेताओं की भरमार हो गयी। लेकिन इन सभी अति पिछड़ें नेता अपने-अपने निजी लाभ के लिए सत्ता का चक्कर काटते रहे।

एक साथ मिलकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर दवाव नहीं बना पाए। परिणाम यह रहा कि अनुप्रिया पटेल कुर्मी व पटेल के नाम पर मंत्री बन गयी। अनुप्रिया पटेल की बहन और माँ सपा में सत्ता की भूख में जुडी हुई है। ओम प्रकाश राजभर, संजय निषाद भाजपा से समझौता करके व्यक्तिगत लाभ उठाया और अब चुनाव नजदीक आते देखकर अतिपिछड़ों को अधिकार दिलाने के नाम पर घड़ियाली आंसू बहा रहे हैं। केशव मौर्या जिन्हें 2017 में मुख्यमंत्री का चेहरा अघोषित रूप से अतिपिछड़ों में दिखाया गया था।

उन्हें योगी आदित्यनाथ वैसा महत्व नहीं देते जैसा कि अति पिछड़ों के बड़े नेता की नुमाइंदगी के रूप में दिया जाना चाहिये। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछड़ों की नाराजगी को दूर करने के लिए मेडिकल में 27 प्रतिशत आरक्षण दे दिया लेकिन उत्तर प्रदेश में 36% अति पिछड़ों की आबादी न्याय पाने के लिए आज भी आस लगाए बैठी है। जो हालात और अति पिछड़ें नेताओं के नाम पर सत्ता से सौदेबाजी हो रही है उससे नहीं लगता कि उत्तर प्रदेश में 9 करोड़ से अधिक अति पिछड़ी आबादी को न्याय मिल पायेगा ।

(लेखक उत्तर प्रदेश के नामचीन राजनैतिक विश्लेषक हैं और पूर्व में सहारा समय उत्तर प्रदेश के स्टेट हेड रहे हैं, विचार उनके निजी हैं)

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