अब न हो किसी वंदना की मौत, खत्म हो प्रधान से लेकर प्रधान सेवक तक फैला वीआईपी कल्चर

अब न हो किसी वंदना की मौत, खत्म हो प्रधान से लेकर प्रधान सेवक तक फैला वीआईपी कल्चर

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राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का यूपी का पांच दिवसीय दौरा आज 29 जून दिन मंगलवार को खत्म हो गया। उनके दौरे का तीन दिन का वक्त गृह जनपद कानपुर में गुजरा। इस दौरान जाम में फंसकर कारोबारी महिला वंदना मिश्रा की मौत ने सबको झकझोर कर रख दिया।खुद राष्ट्रपति ने संवेदना जताई, तो पुलिस कमीश्नर असीम अरूण मृतका के घर तक पहुंचे व इस चुक के लिए माफी मांगी।

वीआईपी कल्चर के चलते सुरक्षा के नाम पर ट्रैफिक रोक देने से अब तक न जाने कितनी वंदना की जान जा चुकी है।अंग्रेजों के जमाने से बरकरार यह संस्कृति खत्म होने के बजाय लगातार बढ़ती चली गई।जिसका खामियाजा आम नागरिकों को भुगतना पड़ता है। वीआईपी संस्कति पर गौर करें तो यह कमोबेश ग्राम प्रधान से लेकर प्रधान सेवक (प्रधानमंत्री )तक में दिखती है। ऐसे में सवाल उठता है कि यह संस्कति खत्म किए बिना हम वंदना जैसी होनेवाली मौतों पर रोक नहीं लगा पाएंगे।

कानपुर की घटना पर गौर करें तो ऐसे हालात हर दिन कहीं न कहीं बनी रहती है। उस दिन भी राष्ट्रपति के रूप में सुपर वीआईपी के शहर में होने से सभी प्रमुख मार्ग बंद कर दिए गए थे। कानपुर की कारोबारी महिला वंदना मिश्रा (50) को कोविड था,शाम को तबियत खराब होने पर उन्हें कार से अस्पताल ले जाया जा रहा था लेकिन उनकी कार कानपुर के नंदलाल इलाके और गोविंदपुरी फ्लाईओवर के बीच फंस गई। पुलिस ने आगे रास्ता बंद कर रखा था। घर वालों ने बहुत दुहाई दी लेकिन पुलिस वालों ने रास्ता नहीं खोला। इसी जद्दोजहद में वंदना मिश्रा की मौत हो गई। वंदना इंडियन इंडस्ट्रीज एसोसिएशन (आईआईए) की महिला विंग की अध्यक्ष थीं।

खास बात यह है कि वंदना मिश्रा अगर कानपुर के इलीट वर्ग से न होतीं तो शायद मीडिया इस खबर की चर्चा नहीं करता। किसी जन आंदोलन के दौरान किसी एम्बुलेंस को रास्ता न मिलने पर लोग फौरन उस आंदोलन को कोसने लगते हैं। लेकिन वीआईपी काफिलों के चलते होने वाली मौत अगर कोई वंदना मिश्रा जैसी हैसियत नहीं रखता है तो उसका कोई महत्व नहीं है। बहरहाल, वक्त आ गया है भारतीय महानगरों में बढ़ती भीड़ के मद्देनजर रास्ते बंद कर वीआईपी कल्चर दिखाने का रिवाज बंद हो। ताकि आम लोगों की जिन्दगी और शहरों के यातायात पर असर न पड़े।

हमारे यहां वीआईपी कल्चर को लेकर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने को प्रधान सेवक कहते हैं।उन्होंने 2014 के लोकसभा चुनाव के दौरान अपने कैंपेनिंग में कहा था कि हम देश से वीआईपी कल्चर खत्म कर देंगे। सभाओं में इनकी ये बातें लोगों को खूब अच्छी लगी।लिहाजा तालियां भी उन्होंने खूब बटोरी।इसके बाद लोगों ने एक बड़ी उम्मीद के साथ सत्ता दिलाई।सात वर्ष गुजर गए,पर वीआईपी कल्चर खत्म करने का सवाल अधूरा है।

राजनीति शास्त्र के असिस्टेंट प्रोफेसर डा अरविंद पांडे कहते हैं कि यूरोप के धनाढय देशों के प्रधानमंत्री बसों में चलते नजर आते हैं।ये भी राजनीति के माध्यम से देश सेवा कर रहे हैं। जबकि हमारे यहां जिलों में मंत्री को गार्ड आफ आनर से महिमामंडित किया जाता है।एक मुख्यमंत्री के पीछे दर्जनों गाड़ियों का काफिला न चले तो कैसे पता चलेगा कि ये जनता के सेवक हैं। जन नेता फर्जी धमकी भरी चिट्ठी लिखवाकर पिस्तौल से लैस सुरक्षाकर्मीं तैनात कराते हैं। ग्राम प्रधान तक अपनी जीत के बाद वीआईपी लगने की सारी कवायदें करता है।

सामाजिक कार्यकर्ता महेंद्र यादव का कहना है कि लाल बत्ती संस्कृति यानी वीआईपी संस्कृति लोकतांत्रिक देश में सामंतवादी प्रवृत्ति को दर्शाती है। चाहे नौकरशाह हों या फिर राजनेता इस संस्कृति को समाप्त करने की दिशा में ठोस कदम उठाये जाने चाहिए। आमतौर पर इस संस्कृति को विशिष्ट पदों पर विराजमान लोगों को विभिन्न स्तरों पर मिलने वाले लाभ से जोड़कर देखा जाता है। खासतौर पर लाल बत्ती का वाहन इस्तेमाल करने वालों के लिए सड़क यातायात में वे नियम-कायदे लागू नहीं होते जो आमजन के लिए होते हैं। उन्हें सड़कों पर प्राथमिकता से आगे जाने दिया जाता है। उनके वाहनों की या उनकी सामान्य सुरक्षा जांच भी नहीं होती। जिसका खामियाजा कभी कभार आमलोगों को जाम में फंसकर भुगतना पड़ता है।कई बार तो ऐसा भी देखने में आता है कि ऐसे विशिष्ट जन के वाहनों के लिए पार्किंग भी अलग से होती है।

दो माह पूर्व केंद्रीय गृह राज्य मंत्री जी किशन रेड्डी ने संसद में बताया था कि देश में 230 लोगों को सीआरपीएफ और सीआईएसएफ जैसे केंद्रीय अर्द्धसैनिक बलों द्वारा ‘जेड प्लस’, ‘जेड’ और ‘वाई’ श्रेणियों के तहत सुरक्षा प्रदान की जा रही है। रेड्डी ने लोकसभा में एक प्रश्न के लिखित उत्तर में यह जानकारी दी थाी। उन्होंने कहा, ‘सुरक्षा प्राप्त लोगों की केंद्रीय सूची में शामिल व्यक्तियों के समक्ष जोखिम के बारे में केंद्रीय एजेंसियों के आकलन के आधार पर उन्हें सुरक्षा दी जाती है तथा इसकी समय-समय पर समीक्षा की जाती है। इस तरह की समीक्षा के आधार पर सुरक्षा कवर जारी रखने, वापस लेने या संशोधित करने का फैसला होता है।’मंत्री ने बताया कि मौजूदा में 230 लोगों के नाम इस केंद्रीय सूची में शामिल हैं। उन्होंने कहा कि आमतौर पर इन लोगों की सुरक्षा पर होने वाले खर्च का वहन सरकार द्वारा किया जाता है। हालांकि उन्होंने इस बात का ब्यौरा नहीं दिया कि ऐसे लोगों की सुरक्षा पर कुल कितनी राशि व्यय होती है।

हाल ही में लोकसभा में यह सवाल पूछा गया था कि देश में इस समय कितने लोगों को जेड प्लस सुरक्षा उपलब्ध कराई जा रही है? गृह मंत्रालय ने लोकसभा में इस सवाल के जवाब में बताया कि 40 लोगों को जेड प्लस सुरक्षा दी जा रही है। गृह मंत्रालय ने लोकसभा में ये भी बताया है कि ये सुरक्षा केंद्रीय एजेंसियों की ओर से खतरे के आंकलन के बाद इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) की रिपोर्ट के आधार पर दी जाती है। इस सुरक्षा में मंत्रालय के आदेश पर नेशनल सेक्यूरिटी गार्ड (एनएसजी), केंद्रीय रिजर्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ), केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) और भारत तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) के जवान अलग-अलग वीआईपी को सुरक्षा की ‘‘ब्लू बुक‘‘ के आधार पर सुरक्षा में लगे हुए हैं।

जेड प्लस कैटेगरी की सुरक्षा

सुरक्षा की ब्लू बुक के मुताबिक हर एक वीवीआईपी को जेड प्लस कैटेगरी की सुरक्षा दी जाती है। इनके चारो तरफ कड़ा सुरक्षा का पहरा होता है। सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक 58, कमांडो जेड प्लस कैटेगरी की सुरक्षा में तैनात होते हैं। सुरक्षा मामलों की ब्लू बुक की मानें तो जेड प्लस कैटेगरी की सुरक्षा में 10 आर्म्ड स्टैटिक गॉर्ड, 6 पीएसओ एक समय मे राउंड द क्लॉक, 24 जवान 2 एस्कॉर्ट में राउंड द क्लॉक, 5 वॉचर्स दो शिफ्ट में रहते हैं। एक इंस्पेक्टर या सब इंस्पेक्टर इंचार्ज के तौर पर तैनात रहता है।

वीआईपी के घर में आने जाने वाले लोगांे के लिए 6 फ्रीस्किंग और स्क्रीनिंग करने वाले तैनात रहते हैं और इसके साथ ही राउंड द क्लॉक ट्रेंड 6 ड्राइवर होते हैं। गृह मंत्रालय के मुताबिक सुरक्षा के ब्लू बुक के आधार पर जेड प्लस कैटेगरी की सिक्योरिटी के अलावा कई अन्य तरीके की सुरक्षा भी वीआईपी को दी जाती हैं। इसमें जेड कैटेगरी के अलावा वाई प्लस कैटेगरी, वाई कैटेगरी और एक्स कैटेगरी शामिल है।

जेड श्रेणी की सुरक्षा

जेड श्रेणी की सुरक्षा में कुल 33 सुरक्षागार्ड तैनात होते हैं। आर्म्ड फोर्स के 10 आर्म्ड स्टैटिक गार्ड वीआईपी के घर पर रहते हैं। 6 राउंड द क्लॉक पीएसओ, 12 तीन शिफ्ट में आर्म्ड स्कॉर्ट के कमांडो, 2 वॉचर्स शिफ्ट में और 3 ट्रेंड ड्राइवर राउंड द क्लॉक मौजूद रहते हैं।

वाई प्लस कैटेगरी की सुरक्षा

इस प्रकार की सुरक्षा में आर्म्ड पुलिस के 11 कमांडो तैनात किए जाते हैं जिसमें पुलिस के 58 स्टैटिक जवान वीआईपी की सुरक्षा के लिए उनके घर और आसपास रहते हैं। साथ ही 6 पीएसओ तीन शिफ्ट में सुरक्षा करते हैं।

वाई कैटेगरी की सुरक्षा

यह सुरक्षा कम खतरे वाले लोगों को दी जाती है। इसमें कुल 8 सुरक्षाकर्मी शामिल होते हैं। इसमें जिस वीआईपी को सुरक्षा दी जाती है उसमें पांच आर्म्ड स्टैटिक गार्ड उसके घर पर लगाए जाते हैं साथ ही तीन शिफ्ट में तीन पीएसओ सुरक्षा प्रदान करते है।

एक्स कैटेगरी की सुरक्षा

इस श्रेणी में तीन सुरक्षा गार्ड तैनात होते हैं जिसमें एक पीएसओ (व्यक्तिगत सुरक्षा अधिकारी) होता है। देश में काफी लोगों को एक्स श्रेणी की सुरक्षा प्राप्त है। इस सुरक्षा में कोई कमांडो शामिल नहीं होता. सिर्फ 3 शिफ्ट में एक-एक पीएसओ वीआईपी अपने साथ लेकर चल सकता है।

पिछले वर्ष एसपीजी का बजट था 592.55 करोड़ रुपये

एसपीजी के लिए बजट 2020-21 में 10 फीसदी का इजाफा किया गया था। इसको लेकर एसपीजी को 592.55 करोड़ रुपये बजट में आवंटित किया गया था। 2019-20 के बजट में एसपीजी के लिए 540.16 करोड़ रुपये के फंड का आवंटन किया गया था, तब चार लोगों को एसपीजी सुरक्षा मिली थी। यानि एक व्यक्ति की सुरक्षा में 135 करोड़ रुपये का खर्च आता था। अब प्रति व्यक्ति एसपीजी सुरक्षा में करीब 340 प्रतीशत की बढ़ोत्तरी हुई है।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सुरक्षा पर रोजाना एक करोड़ 62 लाख रुपये खर्च होते हैं। यह जानकारी केंद्रीय गृह राज्यमंत्री जी किशन रेड्डी ने संसद में दिए एक प्रश्न के लिखित जवाब में दी थी। उनके मुताबिक स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप (एसपीजी) सिर्फ प्रधानमंत्री को सुरक्षा देता है। इसके अलावा देश की 56 वीआईपी हस्तियों की सुरक्षा का जिम्मा सीआरपीएफ का है। रेड्डी ने बताया कि एसपीजी कानून में संशोधन के बाद नई व्यवस्था के तहत एसपीजी सिर्फ प्रधानमंत्री और उनके साथ रह रहे परिजनों को ही सुरक्षा देगी।

प्रति वर्ष जनता की गाढ़ी कमाई वीआईपी कल्चर को पूरा करने के नाम पर खर्च हो जाते हैं । दूसरी तरफ इसका खामियाजा भी आम आदमी को ही भुगतना पड़ता है । जनता के बीच से ये नेता कुर्सी पाते ही अपने को इतना असुरक्षित क्यों महसूस करने लगते हैं। जिसके कारण सुरक्षा मद में भारी रकम खर्च करना पड़ता है। इन सब का खामियाजा वंदना जैसी महिला के मौत के रूप में हमें ही भुगतना पड़ता है।

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