सेना के हितों पर कांग्रेस ने जारी किया श्वेत पत्र, कहा सैनिकों के अधिकारों पर रोज कुठाराघात कर रही मोदी सरकार

सेना के हितों पर कांग्रेस ने जारी किया श्वेत पत्र, कहा सैनिकों के अधिकारों पर रोज कुठाराघात कर रही मोदी सरकार

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लखनऊ ,28, जनवरी (TNA) मोदी सरकार और भाजपा ने एक तरफ़ तो सेना की कुर्बानी सेना के शौर्य का इस्तेमाल अपने राजनैतिक स्वार्थों की पूर्ति के लिए किया, दूसरी ओर सेना और सैनिकों के हितों पर कुठाराघात किया। वन रेंक, वन पेंशन के नाम पर धोखा, सेना के पदों को न भरना, सेना की मूलभूत सुविधाओं को भी छीन लेना, विसंगतियों को जानबूझकर नज़रंदाज करना, सिविलियन कर्मचारियों के मुकाबले सेना से भेदभाव करना, पूर्व सैनिकों के पुनर्वास व रोज़गार पर चोट पहुंचाना तथा सैन्य शक्ति को कमज़ोर करना मोदी सरकार में सेना का मनोबल तोड़ने की साजिशों का हिस्सा है।

उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के मुख्यालय पर महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने प्रेसवार्ता को संबोधित करते हुए मोदी राज में सेना और सैनिकों को लेकर हो रहे अपमान पर श्वेत पत्र ‘‘शौर्य के नाम पर वोट सेना के हितों पर चोट’’ को जारी करते हुए यह बातें कही।

पूर्व मुख्यमंत्री चव्हाण ने कहा, जब भी हम अपनी सेनाओं को याद करते हैं, तब तब हमारा मस्तक गर्व से ऊंचा हो जाता है। जब-जब भारत माँ की गरिमा पर आँच आती है, हमला होता है, तब-तब हमारी सेनाओं के सपूत अपना सर्वोच्च बलिदान देकर भी भारत माँ के गौरव की रक्षा करते हैं। देश की माटी की रक्षा की अटूट सौगंध ले यह कुर्बानी केवल हमारे सैनिक ही दे सकते हैं। मगर मोदी सरकार ने तो देश की सुरक्षा से ही समझौता किया है। यह बात भाजपा के वरिष्ठ नेता, श्री मुरली मनोहर जोशी ने ‘‘पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमिटी ऑन एस्टीमेट’’ की रिपोर्ट में बताई और कहा कि मोदी सरकार भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा से खिलवाड़ कर रही है व सेना के हितों को नकार कर सरकार ने सेना के बजट में 60 साल की सबसे भीषण कटौती की है।

कांग्रेस सरकार ने 23 नवंबर, 2012 को सभी अर्धसैनिक बलों को ‘‘एक्स सेन्ट्रल आर्म्ड पोलिस फोर्स पर्सनल’’ चिन्हित करते हुए केंद्रीय व प्रांतीय सरकारों को आदेश जारी किया कि सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, सीआईएसएफ, एसएसबी, कोस्ट गार्ड आदि के सभी रिटायर्ड अधिकारियों को तीनों सेनाओं के समान एक्स सर्विसमैन की सभी सुविधाएं दी जाए। परंतु केंद्र की मोदी सरकार व प्रांतीय भाजपा सरकारों ने इसकी अनदेखी की। भाजपा सरकार सैनिकों, सेना के नाम पर वोट बटोरती है, लेकिन बात जब सैनिकों, सेना के हितों की आती है, तो मोदी सरकार की धोखेबाजी सामने आ जाती है।

उन्होंने कहा कि मोदी सरकार की शर्मनाक असंवेदनशीलता का इससे बड़ा सबूत क्या है कि जिस दिन हमारे चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, जनरल बिपिन रावत जी और उनकी धर्मपत्नी एक दुखद दुर्घटना का शिकार हुए, उसी दिन उनके पितातुल्य ससुर की समाधि पर मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार बुलडोजर चला देती है। इन सबसे एक बात साफ़ है- केंद्र की भाजपा सरकार सेना के शौर्य के नाम पर वोट तो बटोरती है पर सैनिकों के अधिकारों पर रोज कुठाराघात करती है। इतना ही नहीं, भाजपा के एक और वरिष्ठ नेता, मेजर जनरल, बी सी खंडूरी ने पार्लियामेंट्री स्टैंडिंग कमिटी ऑन डिफेंस के प्रमुख रहते हुए अपनी रिपोर्ट में कहा कि मोदी सरकार ने न सिर्फ भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा से कुठाराघात किया है, अपितु सेना के आधुनिकीकरण को नुकसान पहुंचाया।

उन्होंने कहा 13 दिसंबर, 2021 को रक्षा मंत्रालय ने संसद को बताया कि तीनों सेनाओं में 1,22, 555 पद खाली पड़े हैं, जिनमें से लगभग 10,000 पद सैन्य अधिकारियों के भी हैं। देश की सुरक्षा से मोदी सरकार द्वारा किया जा रहा यह खिलवाड़ नाकाबिले माफ़ी है। मोदी सरकार ने ‘‘वन रैंक, वन पेंशन’’ के नाम पर 30 लाख पूर्व सैनिकों को धोखा दिया है। यूपीए- कांग्रेस सरकार ने साल 2004 से साल 2012 के बीच तीन बार भूतपूर्व सैनिकों को पेंशन दी, जिससे उन्हें ₹7,000 करोड़ का अतिरिक्त आर्थिक फायदा हुआ। मगर सत्ता में आने के बाद मोदी अपने वादे से पलट गए। 7 नवंबर, 2015 को मोदी सरकार ने नया आदेश निकाला और सेना के 30-40 प्रतिशत सैनिकों से ‘‘वन रैंक, वन पेंशन’’ पूरी तरह से छीन ली।

उन्होंने कहा मोदी सरकार ने ईसीएचएस बजट में लगातार कटौती कर रही है। यहाँ तक कि मौजूदा साल 2021-22 में पिछले साल के मुकाबले पूर्व सैनिकों का ईसीएचएस बजट 1,990 करोड़ रुपए काट लिया गया। ईसीएचएस बजट में कटौती का नतीजा यह है कि ईसीएचएस के एम्पेनल्ड अस्पतालों में एरियर्स का भुगतान नहीं हो रहा, और नतीजतन रेफरल के बावजूद पूर्व सैनिकों और अधिकारियों का इलाज नहीं हो रहा।

मोदी सरकार ने सीएसडी कैंटीन से सैनिकों व अधिकारियों द्वारा उपभोक्ता वस्तुओं की खरीद पर अधिकतम ₹10,000 प्रतिमाह की सीमा निर्धारित कर पाबंदी लगा दी है। साथ ही साल 2017 से मोदी सरकार ने यह भी फैसला लिया है कि सीएसडी कैंटीन में बिकने वाले सामान पर आधी यानि 50 प्रतिशत दरों पर जीएसटी देना पड़ेगा। मोदी सरकार ने सैनिकों को मिलने वाले ‘‘डिसएबिलिटी पेंशन’’ पर भी टैक्स लगाया है।

पूर्व मुख्यमंत्री चव्हाण ने कहा कि सातवें वेतन आयोग में डिफेंस पे मैट्रिक्स में केवल 24 पे लेवल निर्धारित किए गए, जबकि सिविलियन सेवाओं में पे मैट्रिक्स में 40 लेवल है। नतीजा यह है कि सैनिकों व अधिकारियों की पेंशन सिविल एम्प्लॉईज़ से लगभग 20,000 रु. कम निर्धारित होती है। भारत सरकार के अतिरिक्त सचिव को ₹60,000 डिसएबिलिटी पेंशन मिलती है, पर सेना के लेफ्टिनेंट जनरल को ₹27,000 डिसएबिलिटी पेंशन मिलती है। बराबरी की मांग के बावजूद इसे दरकिनार कर दिया गया। भाजपा द्वारा फ़ौज की अनदेखी की इंतहा यह है।

उन्होंने कहा कि सेना में हजारों की संख्या में पुरुष व महिला अधिकारी ‘‘शॉर्ट सर्विस कमीशन’’ के माध्यम से देश सेवा में योगदान देते हैं। इन अधिकारियों को आजीवन मिलिट्री अस्पताल में इलाज की सुविधा थी। मोदी सरकार ने शॉर्ट सर्विस कमीशन पुरुष व महिला अधिकारियों के मिलिट्री अस्पतालों में मुफ्त इलाज पर प्रतिबंध लगा दिया।

उन्होंने कहा कि सिविलियन सेवाओं में सभी अधिकारियों को ‘‘नॉन-फंक्शनल अपग्रेड’’ की सुविधा है, यानि अगर एक बैच का आईएएस या आईपीएस या अन्य अधिकारी तरक्की पाकर अगला पे स्केल ले लेता है, तो उस बैच के सभी अधिकारियों को वही पे स्केल मिलेगा। परंतु तीनों सेनाओं के सैन्य अधिकारियों को बार-बार मांग उठाने के बावजूद इससे वंचित कर दिया गया है, जिससे सेनाओं में भारी निराशा है।

कांग्रेस सरकारों में पूर्व सैनिकों, सैनिक विधवाओं, सेवा में चोटिल हो सेवानिवृत्त हुए सैन्यकर्मियों को अनेकों सुविधाएं देने की नीति थी, जैसे कि प्राथमिकता पर पेट्रोल पंप, गैस एजेंसी, कोयला लदान व ट्रांसपोर्ट कॉन्ट्रेक्ट का आवंटन, सरकारी सिक्योरिटी कॉन्ट्रैक्ट में प्राथमिकता आदि। सात साल की मोदी सरकार में ये सुविधाएं लगभग खत्म हो गई हैं या निजीकरण की भेंट चढ़ गई हैं। पूर्व सैनिकों के लिए अब सिक्योरिटी सर्विस लाईसेंस के अलावा शायद ही कुछ बचा है।

पूर्व मुख्यमंत्री चव्हाण ने कहा, देश सेवा में कुर्बान होने वाले अर्द्धसैनिक बलों, सीआरपीएफ, बीएसएफ, आईटीबीपी, सीआईएसएफ, एसएसबी, कोस्ट गार्ड आदि के जवानों को मोदी सरकार ने ‘‘शहीद’’ का दर्जा देने से वंचित कर दिया। नतीजा यह है कि न तो परिवार को उचित मुआवजा मिल पाता और न सरकारी नौकरी।

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