अखिलेश यादव सीट बटवारे में चाहते हैं अपना वर्चस्व, मुद्दे पर कांग्रेस अभी नहीं खोल रही अपने पत्ते
लखनऊ, सितंबर 27 (TNA) उत्तर प्रदेश की सियासत में आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) से मुकाबला करने को लेकर विपक्ष गठबंधन यानी इंडिया गठबंधन की टीम तय है, लेकिन अभी कैप्टन को लेकर तस्वीर साफ नहीं है. इंडिया गठबंधन में समाजवादी पार्टी (सपा), राष्ट्रीय लोकदल (आरएलडी) और कांग्रेस समेत कई दल शामिल हैं, लेकिन यूपी में इंडिया गठबंधन किसकी अगुवाई भाजपा को चुनौती देगा इसे लेकर तस्वीर अभी साफ नहीं है.
यू तो उत्तर प्रदेश में सपा ही प्रमुख विपक्षी पार्टी है. इस नाते सपा मुखिया अखिलेश यादव ही इंडिया गठबंधन के टीम लीडर होने चाहिए, लेकिन इस बारे में कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने अभी तक कोई संकेत नहीं किया है. जिसके चलते सपा खेमे में बेचैनी बढ़ाती जा रही है. यही वजह है कि सपा मुखिया ने माइंड गेम खेलते हुए दावा किया है कि सपा यूपी में इंडिया गठबंधन में सीट मांग नहीं रही बल्कि सीट दे रही है.
यह दावा करते हुए अखिलेश यादव ने अब साफ कर दिया कि उत्तर प्रदेश में उन्ही के नेतृत्व में इंडिया गठबंधन भाजपा को चुनौती देगा. यहां इंडिया गठबंधन में उनका ही वर्चस्व होगा. विपक्षी गठबंधन के घटक दलों को कितनी सीटें देनी है, इसका फैसला कांग्रेस-आरएलडी नहीं करेंगी बल्कि सपा करेगी?
अखिलेश यादव के इस दावे से यह साफ है कि उत्तर प्रदेश में सपा अब आरएलडी और कांग्रेस को उतना ही सियासी स्पेस देने के पक्ष में है, जितने में उनकी सियासी जमीन बची रहे. अपनी इस राजनीति के तहत अखिलेश यादव अब कांग्रेस पर दबाव बनाने के लिए मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ के विधानसभा चुनावों में उम्मीदवार खड़े करने की बात भी कह रहे हैं.
सपा प्रमुख के ऐसे दावों को कांग्रेस के नेता प्रेशर पॉलिटिक्स मान रहे हैं क्योंकि सीट शेयरिंग के मुद्दे पर कांग्रेस अभी अपने पत्ते नहीं खोले हैं. कांग्रेस नेता चाहते हैं कि यूपी सहित देश के किसी राज्य में सीट शेयरिंग को लेकर कोई विवाद ना हो. इंडिया गठबंधन में शामिल दल उस पर बेजा दबाव ना बनाए. उसे सम्मानजनक सीटें दें तो कांग्रेस भी सहयोग करेगी. लेकिन अगर कांग्रेस को बिलकुल ही कमजोर मानकर किसी बड़े राज्य में एक दो सीटें देने की बात होगी तो कांग्रेस अकेले ही चुनाव मैदान में उतरेगी.
कांग्रेस ही इस सोच का आधार बीते लोकसभा चुनावों के दौरान यूपी में सपा और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के बीच हुई सीट शेयरिंग के आंकड़े हैं. तब सपा ने बसपा को अपनी जीतने वाली सीटे तक दे दी थी. ऐसे अब जब यूपी में मुस्लिम समाज और अन्य समाज के युवा राहुल गांधी के साथ खड़े है तो कांग्रेस भी सपा से ज्यादा सीटें पाने की उम्मीद कर रही हैं.
अखिलेश यादव जानते हैं कि कांग्रेस और आरएलडी एक बार अगर यूपी में फिर से मजबूत हो गईं तो फिर उनके लिए सियासी चुनौती बढ़ जाएगी. इसकी वजह यह है कि मुस्लिम, दलित और जाट मतदाता किसी समय कांग्रेस के साथ हुआ करते थे. मुलायम सिंह यादव और कांशीराम की राजनीति के चलते 90 के दशक में यह मतदाता कांग्रेस से छिटकर सपा और बसपा के साथ जुड़ गया.
अखिलेश यादव की मंशा
उत्तर प्रदेश में कुल 80 लोकसभा सीटें हैं. सूबे में इंडिया गठबंधन इंडिया के सहयोगी दल सपा, आरएलडी और कांग्रेस हैं. आरएलडी के मुखिया जयंत चौधरी यूपी में एक दर्जन लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. कांग्रेस ने भी वर्ष 2009 के अपने वोट बैंक के आधार पर दो दर्जन सीटों को चिन्हित किया है. पश्चिम यूपी के प्रमुख दलित नेता चंद्रशेखर आजाद और कृष्णा पटेल की अपना दल भी लोकसभा चुनाव लड़ने के इच्छुक हैं. सपा ने यूपी की 80 में से 50 से 55 लोकसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की तैयारी कर रखी है.
सपा की चिन्हित की गई सीटों पर कांग्रेस और आरएलडी कोई दावा ना करे इसके लिए अखिलेश ने लोकसभा सीटों पर अपने प्रभारियों की भी नियुक्ति करने शुरू कर दिए हैं. यह सब करते हुए अखिलेश यादव यह सोच रहे हैं कि कांग्रेस यूपी में ज्यादा सीटें पाने के लिए अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों में सपा के लिए सीटें छोड़ेगी.
अखिलेश सपा को राष्ट्रीय पार्टी बनाना चाहते हैं. जिसके चलते ही उन्होने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में भी चुनाव लड़ने की तैयारी की है. एमपी में तो सपा ने छह सीटों पर और राजस्थान में एक सीट पर अपने कैंडिडेट के नाम का ऐलान कर दिया है. इन दोनों ही राज्यों में सपा के एमएलए हैं. मुंबई में हुई विपक्षी गठबंधन की बैठक में सीट शेयरिंग को लेकर सपा ने बात उठाई थी और कहा था कि जल्द से जल्द फॉर्मूला तय हो जाए, लेकिन कांग्रेस की मंशा है कि पांच राज्यों के चुनाव के बाद सीट बंटवारे को लेकर बात हो.
परंतु अखिलेश यादव चाहते हैं कि अभी सीट बंटवारा होने पर यूपी में कांग्रेस को सीट देने के बदले उन्हें राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ चुनाव के लिए भी सीटें मिल जाएंगी. जबकि, कांग्रेस नेता विधानसभा चुनाव के बाद सीट बंटवारे को लेकर चर्चा करने की बात कह रहे हैं. ऐसे में अब अखिलेश यादव ने जिस तरह का दांव चला है, उसके जरिए साफ तौर पर यह बात समझी जा सकती है कि इसके पीछे कहीं कांग्रेस पर दबाव बनाने की रणनीति है.
कांग्रेस समझ रही अखिलेश के दांव पेच
यूपी में सीट बंटवारे को लेकर अखिलेश यादव द्वारा की सियासत के कांग्रेस के नेता भी जान रहे हैं. यही वजह है कि उनकी तरफ से इस मामले में कोई जल्दबाजी दिखाई नहीं जा रही है. इंडिया गठबंधन में कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी के रूप में है, इसलिए वह जो भी फैसला लेगी उसका असर अन्य राज्यों की राजनीति पर पड़ेगा. अब रही बात यूपी की तो सपा के साथ कांग्रेस यूपी में जरूर गठबंधन करना चाहती है, इसलिए लिए वह अपनी दावे वाली सीटे भी छोड़ने को तैयार हो जाएगी, लेकिन सूबे में अखिलेश खुद को अहम रोल में रखना चाहते हैं.
अखिलेश यादव जानते हैं कि कांग्रेस और आरएलडी एक बार अगर यूपी में फिर से मजबूत हो गईं तो फिर उनके लिए सियासी चुनौती बढ़ जाएगी. इसकी वजह यह है कि मुस्लिम, दलित और जाट मतदाता किसी समय कांग्रेस के साथ हुआ करते थे. मुलायम सिंह यादव और कांशीराम की राजनीति के चलते 90 के दशक में यह मतदाता कांग्रेस से छिटकर सपा और बसपा के साथ जुड़ गया.
ऐसे में अगर मुस्लिम, दलित और जाट वोट बैंक कांग्रेस और आरएलडी के साथ चला गया तो सपा में फिर उसको दोबारा से जोड़ पाना आसान नहीं होगा. इसीलिए अखिलेश यादव आरएलडी और कांग्रेस को उतनी ही सियासी स्पेस देने के मूड में जितने में उनकी सियासी जमीन बची रहे. अब देखना यह है कि यूपी में सीटों के बंटवारे को लेकर चल रहे शह-मात के इस खेल में कौन भारी पड़ता है? जल्दी ही इसका फैसला भी हो जाएगा.
— राजेंद्र कुमार