क्या अपनी वास्तविक स्वतंत्रता में जी पा रहा है मनुष्य...???

क्या अपनी वास्तविक स्वतंत्रता में जी पा रहा है मनुष्य...???

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कल 15 अगस्त है। 15 अगस्त यानि स्वतंत्रता दिवस। यही हमलोग बचपन से देखते, सुनते, मनाते आ रहे हैं। राजनीतिक रूप से यह दिन हमारी प्यारी मातृभूमि की स्वतंत्रता का दिन है। तब से लेकर अब तक हर वर्ष इस दिन सभी भारतीय अपने देश की स्वतंत्रता की वर्षगांठ मनाते आ रहे हैं। आजादी के 75 वर्षों बाद किसे क्या मिला? कौन किस हाल में जी रहा है? इस पर बहस चलती रहती है जिसका एक प्रमुख पहलू ये भी रहता है कि 15 अगस्त 1947 को देश तो स्वतंत्र हो गया मगर क्या इस देश में रहने वाले लोग स्वतंत्र हो पाए हैं.....!!!

इसका उत्तर प्राप्त करने के लिए पहले 'स्वतंत्रता' और 'स्वतंत्र' को जानना होगा। इसे कुछ इस‌ प्रकार समझिए-

स्व:+तंत्रता=स्वतंत्रता, स्व:+तंत्र=स्वतंत्र। यहां स्व: मतलब 'मैं' और 'तंत्र' मतलब सिस्टम। मेरा खुद का सिस्टम और समूह के लिए हमारा खुद का सिस्टम। देश के रूप में देश का अपना खुद का सिस्टम जिस पर देश चलता है। इसी तरह समाज, परिवार और अपना खुद का व्यक्तिगत सिस्टम है जिस पर हम चलते हैं। अपना जीवन जीते हैं।

देश दुनिया में वैश्विक, राजनीतिक, आर्थिक, संवैधानिक, सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से छोटे बड़े सभी सिस्टम अपने अपने हिसाब से चल रहे हैं अथवा चलाए जा रहे हैं। इन सबके साथ में मनुष्य का यानि कि इस पृथ्वी पर मौजूद सबसे बुद्धिमान प्राणी का भी एक सिस्टम है जिसके हिसाब से उसे चलना चाहिए मगर दुर्भाग्य से वह अपने सिस्टम से चल नहीं पा रहा है और चाहे अनचाहे में एक प्रकार से गुलामी का जीवन जी रहा है, चाहे देश भले ही राजनीतिक रूप से स्वतंत्र हो गया हो।

शैक्षणिक रूप आज कोई बच्चा क्या एजुकेशन माफिया से बचकर अपनी मनमर्जी की पढ़ाई कर सकता है क्या...??? सांस्कृतिक/सामाजिक रूप से आज कोई बच्चा क्या अपने परिवार और समाज की जाति, धर्म, वर्ग के बिछाए मकड़जाल से बचकर अपनी स्वतंत्रता में जी सकता है क्या.....???

इस बात पर कट्टरपंथी मूढ़मगज चीखने चिल्लाने लगते हैं कि मैं देशभक्त नहीं हूं अपने देश के लोगों को ग़ुलाम बताने की कोशिश कर रहा हूं। जबकि मेरा सवाल बुनियादी है कि क्या हम वास्तविक रूप से स्वतंत्र हो चुके हैं और वास्तविक स्वतंत्रता के जीवन को जी पा रहे हैं.....???

राजनीतिक रूप से क्या हम राजनीतिक पार्टियों के ग़ुलाम के रूप में नहीं जी रहे हैं, क्या आज किसी पोलिटिकल पार्टी में आम कार्यकर्ता अपने नेतृत्व से असहमति जताने के बाद भी उस पार्टी में मान सम्मान के साथ रह सकता है...??? आर्थिक रूप से क्या पूंजीवादी व्यवस्था वाली सरकारों की व्यवस्था के बिछाए जाल से बचकर अपना स्वतंत्र कारोबार कर सकता है क्या....??? नौकरी तो खैर वैसे ही गुलामी का प्रतीक है चाहे सरकारी हो या धन्ना सेठों की।

शैक्षणिक रूप आज कोई बच्चा क्या एजुकेशन माफिया से बचकर अपनी मनमर्जी की पढ़ाई कर सकता है क्या...??? सांस्कृतिक/सामाजिक रूप से आज कोई बच्चा क्या अपने परिवार और समाज की जाति, धर्म, वर्ग के बिछाए मकड़जाल से बचकर अपनी स्वतंत्रता में जी सकता है क्या.....???

यही हाल गुलामी मानसिकता को थोपने वाले सबसे बड़े मकड़जाल धार्मिक/आध्यात्मिक क्षेत्र का है। यहां तो स्थिति इतनी भयावह है कि जरा सा भी अपने स्वतंत्र विचार रखे तो अपमानित होना तो तय है ही, जान भी चली जाए तो आश्चर्य नहीं.....???

जन्म से लेकर इन्हीं सब गुलामी के मकड़जाल में उलझा मनुष्य अपनी वास्तविक स्वतंत्रता को न तो जान पाता है और न ही हासिल कर पाता है। और पूरा जीवन जाने अंजाने में चाहे अनचाहे में कहिए लेकिन गुलामी में ही बिता देता है। जीवन भर दुखी रहता है और दूसऱों को भी दुखी करता रहता है। मनुष्य जीवन की वास्तविक स्वतंत्रता का आनंद लिए बिना पशुओं का जीवन व्यतीत करता मर जाता है।

अब सवाल उठता है कि कि मनुष्य कैसे अपनी वास्तविक स्वतंत्रता प्राप्त करे और कैसे गुलामी के जीवन से पार पा के स्वतंत्र होकर आनंदित जीवन जीये। इसके लिए स्वयं को जानना होगा।‌ स्वयं को जानने की कड़ी में शरीर और मन को जानकर और पीछे छोड़ कर स्वयं को आत्म रूप में जानना होगा यानि अपना आत्म साक्षात्कार प्राप्त करना होगा। जब आप स्वयं को स्व: रूप यानि आत्मा रूप में जानने पहचानने लगेंगे तो धीरे-धीरे इसका काम करने का सिस्टम समझ आने लगेगा कि ये कैसे कार्य करता है। तदुपरांत आप शरीर में रहते हुए 'स्वतंत्र' भाव में आ जाएंगे और अपनी 'स्वतंत्रता' में आनंदमय जीवन जीने लगेंगे। एक आत्म स्वरूप स्वतंत्रता प्राप्त मनुष्य अपने जीवन में अपने साथ, परिवार के साथ, समाज के साथ, देश व दुनिया के साथ जागरूकता भरा संवेदनशील प्रेम से भरा व्यवहार करता है और इन सबसे ऊपर इस पृथ्वी पर कण कण में व्याप्त परम चैतन्य यानि परमात्मा के साथ एकाकार होकर मोक्ष भी प्राप्त करता है।

जो भी मनुष्य अपनी वास्तविक स्वतंत्रता को प्राप्त करना चाहता है उसके लिए 'ध्यान' से बढ़िया और कोई माध्यम नहीं। चौबीस घंटे में से कुछ समय निकाल कर ध्यान करिए और सभी प्रकार की गुलामी से मुक्त होकर अपनी वास्तविक स्वतंत्रता प्राप्त करिए, सही मायने में स्वतंत्र होकर स्वयं भी आनंदित जीवन बिताइए और दूसरों को भी वास्तविक स्वतंत्रता पूर्वक आनंदित जीवन जीने की ओर प्रेरित करिए....

— राजीव तिवारी

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