नजूल संपत्ति विधेयक को लेकर यूपी में मचा है घमासान, विपक्ष ही नहीं सत्ता पक्ष भी कर रहा विरोध

नजूल संपत्ति विधेयक को लेकर यूपी में मचा है घमासान, विपक्ष ही नहीं सत्ता पक्ष भी कर रहा विरोध

परिषद में भी बहुमत होने के बावजूद सत्ता पक्ष के द्वारा इसे प्रवर समिति को भिजवाना साबित करता है कि इस विधेयक में होंगे कई संशोधन
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लखनऊ, अगस्त 5 (TNA) नजूल संपत्ति विधेयक को लेकर यूपी में घमासान मचा हुआ है। विपक्ष ही नहीं सत्ता पक्ष भी विरोध कर रहा है। दिलचस्प यह है कि संशोधन हमेशा विपक्ष मांगता है, लेकिन यहां सत्ता पक्ष ही संशोधन मांग रहा। ऐसे एक तरह से इसे फिलहाल होल्ड करने की सहमति सरकार की लगती है। लिहाजा विधान सभा में यह विधेयक पास होने के बाद भी विधान परिषद में फँस गया।

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष व विधानपरिषद सदस्य भूपेन्द्र चौधरी विधेयक पर असहमत जताते हुए कहा कि अभी इस मुद्दे पर सहमति नहीं है,इसलिए इसे प्रवर समिति में भेजा जाये। विधान परिषद सभापति ने आग्रह स्वीकार किया और इसे प्रवर समिति में भेज दिया। यह समिति दो माह में अपनी रिपोर्ट देगी। गौरतलब है कि कल उत्तरप्रदेश विधानसभा में चर्चा दौरान भाजपा विधायक सिद्धार्थनाथ सिंह, हर्षवर्धन वाजपेयी व रघुराज प्रताप सिंह "राजा भइया" भी विधेयक के विरोध में थे। परिषद में भी बहुमत होने के बावजूद सत्ता पक्ष के द्वारा इसे प्रवर समिति को भिजवाना साबित करता है कि इस विधेयक में कई संशोधन होंगे।

नजूल विधेयक में क्या है और क्यो हो रहा विरोध

दरअसल नजूल विधेयक के जरिए यूपी में नजूल की सारी जमीनें सरकार के कब्जे में आ जाएगी। नजूल बिल के मुताबिक सरकार, नजूल की जमीन को सार्वजनिक उपयोग में लाना चाहती है। इसके लिए उस पर पहले से काबिज कब्जेदारों को बेदखल करना होगा। नजूल की जमीनें 15 से लेकर 99 साल तक की होती है। लीज खत्म होने के बाद उसका अगली अवधि के लिए नवीनीकरण हो जाता है। इस बिल के जरिए कुछ एक अपवादों को छोड़कर सरकार लीज नवीनीकरण करने के पक्ष में नहीं है।

यानि ऐसी जमीनें फिर सरकार के स्वामित्व में आ जाएंगी। सरकार पट्टेदारों को बेदखल करके जमीनें वापिस ले सकती है और वह उनका अपनी प्राथमिकता के आधार पर उपयोग कर सकती हैा हालांकि सरकार इसमें से स्कूल, अस्पताल और गरीबों की रिहाइश को अलग करने की बात कर रही है। मगर उसके प्रावधानों को लेकर बहुत सारे संदेह व्यक्त किए जा रहे हैं।

प्रयागराज में सबसे अधिक एक तिहाई शहर नजूल भूमि पर ही है बसा

बताया जाता है कि उत्तर प्रदेश में करोड़ों की आबादी नजूल की जमीनों पर रहती है। ऐसे में ये एक बड़े विवाद का विषय बन गया। उस आबादी के सर से छत छिनने का खतरा पैदा हो गया। यही वजह है कि यूपी विधानसभा में बहस के दौरान भाजपा के अपने ही विधायकों ने इसका विरोध कर दिया। प्रयागराज से विधायक हर्ष वाजपेयी और सिद्धार्थनाथ सिंह इसके विरोध में उठ खड़े हुए। एक अनुमान के मुताबिक प्रयागराज में सबसे अधिक नजूल भूमि है।

यहां एक तिहाई शहर ही नजूल भूमि पर बसा हुआ है। सिर्फ शहरी इलाके में करीब एक लाख घर से अधिक मकान नजूल भूमि पर बने हैं। जहां करीब पांच लाख लोग गुजर-बसर कर रहे हैं। यही कारण है कि सदन में प्रयागराज के विधायक नजूल विधेयक का विरोध करते हुए नजर आए। बताते हैं कि प्रयागराज के लूकरगंज इलाके का ज्यादातर हिस्सा नजूल की जमीन पर ही बसा हुआ है, जहां अधिकतर मध्यम वर्ग का परिवार ही रहता हैं। विधेयक पास होने के बाद इन लोगों के बेघर होने का खतरा पैदा हो गया था।

हालांकि सरकार ने कुछ शर्तों के साथ लीज नवीनीकरण करने की बात कह रही थी। मसलन, जिन्होंने समय से लीज का रेंट दिया है और लीज की शर्तों का उल्लंघन नही किया है, उनका लीज अगले 30 सालों के लिए नवीकरण कर दिया जाएगा। मगर इसके बाद फिर जमीन सरकार के पास चली जाएगी और इन जमीनों को फ्री होल्ड करने का ऑप्शन जाता रहेगा. इतना ही नही बल्कि इस विधेयक में डीएम को मार्केट रेट पर नजूल संपत्ति का किराया वसूलने का भी अधिकार दिया गया है।

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