काशी में पराये ही नहीं ‘अपनों’ ने भी भाजपा से मुंह मोड़ा, यूं ही कम नहीं रहा पीएम मोदी की जीत का अंतर

काशी में पराये ही नहीं ‘अपनों’ ने भी भाजपा से मुंह मोड़ा, यूं ही कम नहीं रहा पीएम मोदी की जीत का अंतर

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लखनऊ, जून 13 (TNA) लगातार तीसरी बार केंद्र में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनने के बावजूद अयोध्या और काशी ने जीत की चमक फीकी कर दी है। अयोध्या की सीट तो भाजपा के हाथ से फिसल ही गई, काशी में पीएम मोदी की रिकार्ड मतों से जीत के दावे पर भी पानी फिर गया। भाजपा को उम्मीद थी कि मोदी के 10 साल के कार्यकाल में काशी के हुए कायाकल्प और जनकल्याणकारी योजनाएं गेम चेंजर साबित होंगी लेकिन यह गलत साबित हुआ। पीएम मोदी की जीत का अंतर 2014 और 2019 के मुकाबले काफी ज्यादा कम हो गया।

दिलचस्प बात यह है कि न सिर्फ मोदी की जीत का अंतर कम हुआ है बल्कि वोट शेयर में भी जबरदस्त गिरावट हुई है। 2024 के आम चुनाव में ‘अबकी बार 400 पार’ के नारे के साथ चुनाव मैदान में उतरे पीएम मोदी को उनके खुद के निर्वाचन क्षेत्र वाराणसी ने ही ‘सम्मानजनक’ जीत से दूर रखा। वाराणसी में अब सामने आ रहे बूथवार आंकड़े भी बेहद चौंकाने वाले हैं। जहां एक ओर मोदी सरकार की जनकल्याणकारी योजनाओं का फायदा उठा रहे लाभार्थियों ने चुनाव में भाजपा से दूरी बनाए रखी वहीं दूसरी ओर यह भी सामने आ रहा है कि कुछ ‘अपनों’ ने भी मुंह मोड़ लिया।

आम चुनाव के बाद नतीजों को लेकर सभी सियासी दलों में मंथन का दौर शुरू हो गया है। यूपी के चुनाव के नतीजों ने भाजपा को चिंता में डाल दिया है। एक तरफ अयोध्या सीट हारने की टीस है तो दूसरी तरफ काशी में पीएम मोदी की जीत का अंतर कम होने का गहरा घाव। इस बीच सोशल मीडिया पर वाराणसी के कुछ बूथों के आंकड़े वायरल हुए हैं जिसका पार्टी के लोग अपने-अपने तरीके से विश्लेषण कर रहे हैं। इन आंकड़ों पर नजर डालें तो साफ है कि अल्पसंख्यकों ने भाजपा से दूरी बनाए रखी जबकि जनकल्याणकारी योजनाओं का भरपूर फायदा इस वर्ग को भी मिला है। चुनाव के दौरान भाजपा की ओर से अल्पसंख्यकों को अपने पाले में लाने के लिए खास अभियान भी चलाया गया था लेकिन नतीजे इस बात की गवाही दे रहे हैं कि यह सारी कवायद बेनतीजा रही।

इसे इससे भी समझा जा सकता है कि 2019 में जहां मोदी की जीत का अंतर 4.79 लाख था वह इस बार घटकर 1.52 लाख रह गया। 2014 में मोदी ने केजरीवाल को करीब 3.72 लाख मतों के अंतर से हराया था। इस बार जीत का मार्जिन 13 फीसदी के आसपास सिमट जाना मोदी ही नहीं भाजपा के लिए भी आत्ममंथन का संदेश है।

बीते दो-तीन दिन से वाराणसी के वार्ड नंबर 87 सरैया के रहिमिया सरैया वार्ड के एक बूथ का आंकड़ा काफी वायरल हो रहा है। दावा किया जा रहा है कि इस बूथ पर कुल 517 वोट पड़े जिसमें 507 वोट कांग्रेस के अजय राय को मिले जबकि मोदी को 8 तथा 2 वोट बसपा के अतहर जमाल लारी को मिला। यह भी दावा किया जा रहा है कि ये जिस बूथ के आंकड़े हैं वहां भाजपा के 38 कार्यकर्ता हैं। यानी भाजपा के ही 30 लोगों ने मोदी को वोट नहीं दिया।

हालांकि आधिकारिक तौर पर कोई इसकी पुष्टि नहीं कर रहा है लेकिन भाजपा से जुड़े लोगों का कहना है कि ये आंकड़े मुस्लिम बहुल क्षेत्र के हैं इसलिए कांग्रेस को ज्यादा वोट मिले हैं। सरकारी योजनाओं का लाभ ले रहे तमाम लोगों ने भाजपा को वोट नहीं दिया। यही नहीं एक और आंकड़ा वायरल है जो कांग्रेस प्रत्याशी अजय राय के वार्ड का बताया जा रहा है। यहां अजय राय को 73 तथा भाजपा को 534 वोट मिलने की बात कही जा रही है।

सूत्रों का कहना है कि 2014 और 2019 के मुकाबले इस बार काशी में चुनाव प्रबंधन भी कमजोर था। मोदी की जीत तो तय थी लेकिन जीत के अंतर को लेकर अति आत्मविश्वास भारी पड़ गया। स्थानीय स्तर पर कई और ऐसे मुद्दे रहे जिसका चुनाव पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा। इसमें एक बड़ा कारण पुराने कार्यकर्ताओं की उपेक्षा भी बताया जा रहा है।

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