सपा के गढ़ पर भी योगी का बुल्डोजर
कांग्रेस और बसपा के सिमटने के बाद उत्तर प्रदेश में अकेले भाजपा से लड़ रही समाजवादी पार्टी के जनाधार की बची-खुची टहनियां-पत्तियां भी मुरझाती नज़र आने लगी हैं। आजमगढ़ और रामपुर के उपचुनाव में अपने सबसे मजबूत और महफूज़ कहे जाने वाले किलों को भी आज सपा नहीं बचा सकी। यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता के बुलडोजर ने सपा के सबसे मजबूत किलों को तोड़ दिया। यादव-मुस्लिम समीकरण की सबसे बड़ी आधारशिला उखड़ गई।
सपा के जनाधार की जड़े योगी के बुल्डोजर से खुदती नजर आईं। जड़ें खुद गई तो बची खुची टहनियों और पत्तियों को बचा पाना कैसे संभव होगा ! आजमगढ़-रामपुर के लोकसभा उपचुनाव में एम-वाई का आधार दरक सा गया। आजमगढ़ में मुस्लिम बंटकर बसपा की झोली में भी छिटक गया। ऐसी ही यहां यादव समाज का एक तबका भाजपा के मोह से जुड़ता दिखा। रामपुर के वोट प्रतिशत और नतीजों ने संकेत दिए कि मुस्लिम समाज में अब सपा को जिताने और भाजपा को हराने का जोश ठंडा पड़ गया। और ये सब भाजपा के लिए वरदान सा है।
भाजपा के बारे में कहा जाता है कि वो अपने प्रतिद्वंद्वी को जब तक जड़ों से खत्म न कर दे तब तक चैन से नहीं बैठती। कांग्रेस के तत्कालीन कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को पिछले विधानसभा चुनाव में अमेठी में हराना एक मिसाल है। सपा की ये करारी हार पार्टी के सबसे बड़े दो नेता अखिलेश यादव और आज़म खान की सबसे बड़ी शिकस्त कहीं जा रही है। और ये दोनों नेता भी अपनी सबसे बड़ी शिकस्त के जिम्मेदार हैं।
आश्चर्य है कि पार्टी अध्यक्ष अखिलेश ने चुनावी सभाएं की ही नहीं। इसके दो ही कारण हो सकते हैं, पहला में कि वो अति आत्मविश्वास में थे और दूसरी वजह ये हो सकती है कि वो मान बैठे थे कि वो दोनों सीटें हार रहे हैं। दूसरे आज़म खान जिन्होंने जेल से जमानत पर रिहाई के बाद जनसभाएं तो खूब की लेकिन वो अपने पहले जैसे चिरपरिचित अंदाज में इतना कड़वा और विवादित बोले की रामपुर के मतदाताओं को एक जनसभा में उन्होंने हिजड़ा तक बोल दिया।
मुख्यमंत्री योगी की गुड गवर्नेस का असर है, सूबे को अपराधमुक्त-दंगामुक्त बनाने के लिए चलते बुल्डोजर का कमाल , हिन्दुत्व का एजेंडा या फिर लोकप्रियता की आंधी है, आज लोकसभा उपचुनाव के नतीजों में सपा के दोनों किले ढहने के बाद तो लगने लगा है कि यूपी विपक्ष विहीन हो गया।
भाजपा की निरंतर जीत और विपक्ष के हाशिए पर आने के तमाम कारण है। भाजपा का लम्बा संघर्ष, धैर्य, संयम और अनुशासन न सिर्फ उसे लगातार विजय दिला रहा है बल्कि अजेय की तरफ लिए जा रहा है। 2010 के दशक में तत्कालीन गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की लहर चल चुकी थी। लेकिन उत्तर प्रदेश में जातिवादी राजनीति के आगे ये लहर बौनी थी, 2012 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में सपा जीती और अखिलेश यादव मुख्यमंत्री बनें।
2014 के लोकसभा चुनाव में ये लहर आंधी बन कर यूपी को जातिवाद की राजनीति से आज़ाद कराने में कामयाब हुई। नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने में सबसे बड़ा शेयर यूपी की जनता का था। 2017 में यूपी के विधानसभा चुनाव में भाजपा प्रचंड बहुमत से जीती। यहां कांग्रेस पहले से ही कमज़ोर थी, सपा और बसपा भी हाशिए पर आने लगी। लेकिन 2017 में ही योगी आदित्यनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद योगी आदित्यनाथ की बढ़ती लोकप्रियता और बढ़ते जनाधार ने कांग्रेस, सपा और बसपा के वजूद की ही उल्टी गिनती शुरू कर दी।
विपक्षी अपने घर में ही बेगाने होने लगे। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के घर यूपी में ही उसका सफाया हो लगा। कांग्रेस की पुश्तैनी अमेठी लोकसभा सीट राहुल गांधी हार गया थे। 2022 विधानसभा चुनाव में कांग्रेस दो सीटों पर सिमट गई।करीब ढाई-तीन दशक तक यूपी में जड़े जमाए बहुजन समाज पार्टी एक सीट में सिमट गई। मुख्यमंत्री योगी की गुड गवर्नेस का असर है, सूबे को अपराधमुक्त-दंगामुक्त बनाने के लिए चलते बुल्डोजर का कमाल , हिन्दुत्व का एजेंडा या फिर लोकप्रियता की आंधी है, आज लोकसभा उपचुनाव के नतीजों में सपा के दोनों किले ढहने के बाद तो लगने लगा है कि यूपी विपक्ष विहीन हो गया।
पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा के सामने अस्ल मायने में मुकाबले में केवल समाजवादी पार्टी गठबंधन था। सपा हारी पर अच्छे वोट हासिल किए। लेकिन लोकसभा उपचुनाव में रामपुर और आज़मगढ़ हारने के बाद सपा भी कांग्रेस और बसपा की तरह हाशिए की तरफ बढ़ती नज़र आने लगी है। समाजवादियों के सबसे मजबूत किले आजमगढ़ और रामपुर की हार के बाद मुस्लिम-यादव समीकरण भी ध्वस्त होते नजर आने लगे। देश के सबसे बड़े इस सूबे की लोकसभा सीटों के उप चुनाव के नतीजे कई मायने में ख़ास रहे।
सपा का आधार मुस्लिम-यादव टूट गया तो आगामी लोकसभा चुनाव में भाजपा के सामने आखिर होगा कौन ? क्या यूपी विपक्ष विहीन हो जाएगा ?
— नवेद शिकोह