टूट गया पत्रकारिता के नीले आकाश का सितारा नीलांशु, कठपुतली पत्रकारिता के दौर में भी थे साहसी, निष्पक्ष
नई पीढ़ी की जदीद पत्रकारिता के सशक्त नुमाइनदे नीलांशु शुक्ल का भरी जवानी में चला जाना बेहद दुखदाई है। इंडिया टुडे टीवी के लखनऊ ब्यूरो में तैनात ये टीवी जर्नलिस्ट कोरोना के खिलाफ लड़ाई लड़ते-लड़ते खुद कोरोना संक्रमित हो गया था। इलाज में सुधार के कुछ दिन बाद मौत की नियति के आगे इन्हें हारना पड़ा।
नीलांशु बेहद बड़े पत्रकार थे इसलिए पत्रकार बिरादरी बेहद रंजीदा है। वो इंडिया टुडे ग्रुप के लिए काम कर रहे थे इसलिए इन्हें बेहद बड़ा नहीं कहा जा रहा है। ये नौजवान जर्नलिस्ट इसलिए बड़ा था क्योंकि इन्होंने जर्नलिज्म के बड़े सिद्धांतों को बड़ी क़ाबलियत के साथ निभाया।
मेरा मानना है कि पत्रकार होने या बड़े पत्रकार होने का पैमाना किसी सरकारी मान्यता के टुकड़े (मान्यता कार्ड), पत्रकारिता की लम्बी समय अवधि या बड़े ग्रुप की पहचान नहीं होता। खबर की निष्पक्षता, निर्भीकता और विविधता किसी पत्रकार को बड़ा बनाती है।
बड़ी अजीब बात है कि हर क्षेत्र के पेशेवर को उसके पेशे की खूबियों के साथ याद किया जाता है।लेकिन हम किसी भी अच्छे-बुरे मौक़े पर साथी पत्रकारों की खबरों के योगदान का जिक्र नहीं करते। वजह ये है कि आज सरकारी मान्यता प्राप्त सौ पत्रकारों में दस ही अस्ल पत्रकार हैं जिनका वजूद वर्तमान या अतीत की उनकी खबरों से जुड़ा है।
निलांशु हमेंशा निष्पक्ष, संतुलित और साहसिक खबरों के लिए याद किये जायेंगे। इनकी खबरों में विविधता थी। ऊर्जा, ताजगी और ग़जब का बैलेंस नजर आता था। कठपुतली पत्रकारिता के दौर में भी इस साहसिक पत्रकार की खबरों को देखकर लगता था कि उनकी खबरों की डोरी किसी सत्ता या मीडिया समूह के समझौतावादी हाथों में नहीं थी। नीलांशु की हर स्टोरी एक ही ताकत के इशारों पर काम करती थी। वो ताकत थी पत्रकारिता के सिद्धांतों और आदर्शों की फरमाबरदारी। संतुलन, निष्पक्षता, शालीनता,निर्भीकता और विविधता।
इस युवा खबरनवीस की मौत ने एक खबर भी दी है और खबरदार भी किया है। वो ये कि इस कोराना काल में नौजवान और मजबूत प्रतिरोधक क्षमता वाले भी महफूज नहीं है। तमाम एहतियातें भी फेल हो रही है। इंडिया टुडे ग्रुप अपनी फील्ड रिपोर्टिंग टीम के लिए जितना सतर्क और सजग है इतना जागरूक शायद ही कोई मीडिया समूह हो। लेकिन कुदरत के निजाम के आगे किसकी चली है। इन दिनों फिजाओं में मौत मंडरा रही है। मौत एक-एक कर सबको ले जाने पर आमादा है।
श्रद्धांजलि
- नवेद शिकोह
(The author is a senior journalist. Views Expressed ar personal)