निर्वाचन आयोग की आज की स्थिति देख बहुत याद आते हैं टी एन शेषन

निर्वाचन आयोग की आज की स्थिति देख बहुत याद आते हैं टी एन शेषन

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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जिस तरह से बयानबाजी, आराजकता और आरोप-प्रत्यारोप का दौर चल रहा है उसे देखते हुए टी एन शेषन याद आ रहे हैं। टी एन शेषन ने भारत निर्वाचन आयोग के ताकत का एहसास राजनीतिक दलों एवं जनता को उस समय कराया था, जब देश में बूथ कैप्चरिंग का बोलबाला था। बैलेट पेपर पर चुनाव होते थे। जिनके बाजुओं में ताकत होता था वह बैलेट लूटकर सांसद और विधायक बन जाते थे। टी एन शेषन के पहले एक ऐसा माहौल बन गया था जिसमें विधानसभा और लोकसभा में बाहुबली जनप्रतिनिधियों की संख्या बढ़ गयी थी।

उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्य में बूथ कैप्चरिंग करके बाहुबली सांसद और विधायक बन गए थे। ऐसे समय में जब टी एन शेषन को मुख्य निर्वाचन आयुक्त बनाया गया था, उन्होंने अपनी निष्पक्षता और साहस के साथ आयोग की फाइलों में बंद अधिकारों को चुनाव के समय लागू किया। टी एन शेषन ने यह बता दिया कि लोकतंत्र में चुनाव के समय निर्वाचन आयोग की संवैधानिक ताकत क्या होती है और कैसे आयोग अपनी ताकत का इस्तेमाल करके निष्पक्ष चुनाव करा सकता है। टी एन शेषन के निष्पक्ष चुनाव कराने के तमाम उदाहरण हैं।

जिस तरह से हिन्दू, मुस्लिम, ठाकुर, पंडित, पिछड़ा, दलित को लेकर खुले तौर से बात हो रही है। बहस चल रही है। हर हफ्ते 2000 व 5000 मतदाताओं के सर्वे के नाम पर मीडिया किसी भी पार्टी को हराने जिताने, सीटें तथा मत प्रतिशत का उल्लेख कर रही है वह निष्पक्ष चुनाव के लिए घातक है। कोरोना काल में कोविड नियमों का पालन कराने में आयोग असफल है। कोविड की गाइडलाइन जो आयोग ने बनाई है किसी भी राजनीतिक दल द्वारा उसका पालन नहीं किया जा रहा है।

पश्चिम बंगाल में निष्पक्ष चुनाव कराने में संदेह होने के कारण चुनाव को स्थगित कर दिया जिससे पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी जो तत्कालीन केंद्रीय मंत्री थे चुनाव न होने के कारण इस्तीफा देना पड़ा था। बिहार में बूथ कैप्चरिंग खुले आम होती थी। जिसे रोकने के लिए शेषन ने चार बार मतदान स्थगित किया और 650 अर्द्धसैनिक बलों की टुकड़ियों के साथ निष्पक्ष चुनाव संपन्न कराया।

शेषन के निष्पक्ष चुनाव कराने के तमाम उदहारण हैं जो आयोग की फाइलों में दर्ज है। भारत निर्वाचन आयोग को टी एन शेषन के निष्पक्षता पूर्ण कराये गए चुनावों का अनुकरण करना चाहिए। चुनाव आयोग को लेकर परसेप्शन भी निष्पक्ष दिखाई देना चाहिए।

टी एन शेषन सहारा ग्रुप से जुड़े थे। मैं भी सहारा मीडिया से जुड़ा रहा जिसके कारण कई अवसरों पर टी एन शेषन से बात करने का अवसर मिला। उनका कहना था सत्ता किसके हाथ में है इससे देश का भविष्य तय होता है। देश का भविष्य बेहतर कैसे हो इसके लिए निष्पक्ष चुनाव से अच्छे जनप्रतिनिधि चुनना जरुरी है। निष्पक्ष चुनाव कराना निर्वाचन आयोग की जिम्मेदारी है।

आयोग ने अगर निष्पक्ष चुनाव कराके लोकतंत्र में अच्छे लोगों के हाथों में सत्ता सौपी तो निश्चित तौर से देश का भविष्य बेहतर होगा। इसलिए आयोग की जिम्मेदारी लोकतंत्र में बहुत ही महत्वपूर्ण होती है। उनका कहना था कि अधिसूचना जारी होने के बाद प्रधानमंत्री हो या मुख्यमंत्री सभी एक दल के नेता के रूप में हो जाते है।

अहम् भूमिका प्रशासनिक रूप से निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए मुख्य सचिव एवं पुलिस महानिदेशक व निर्वाचन आयोग की हो जाती है। चुनाव के दौरान मुख्यमंत्री हो या प्रधानमंत्री उनके साथ वैसा ही कानून का पालन किया जाता है जैसा कि एक प्रत्याशी के साथ होना चाहिए। मौजूदा हालात में आयोग की कार्यशैली, आचरण सवालों के घेरे में है। लगता ही नहीं भारत निर्वाचन आयोग की कोई साख बची है

जिस तरह से हिन्दू, मुस्लिम, ठाकुर, पंडित, पिछड़ा, दलित को लेकर खुले तौर से बात हो रही है। बहस चल रही है। हर हफ्ते 2000 व 5000 मतदाताओं के सर्वे के नाम पर मीडिया किसी भी पार्टी को हराने जिताने, सीटें तथा मत प्रतिशत का उल्लेख कर रही है वह निष्पक्ष चुनाव के लिए घातक है। कोरोना काल में कोविड नियमों का पालन कराने में आयोग असफल है। कोविड की गाइडलाइन जो आयोग ने बनाई है किसी भी राजनीतिक दल द्वारा उसका पालन नहीं किया जा रहा है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और उम्दा राजनैतिक विश्लेषक हैं, विचार उनके निजी हैं)

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