हरितालिका तीज पर महिलाएं पति की दीर्घायु के लिए रखती हैं 'कठोर व्रत'

हरितालिका तीज पर महिलाएं पति की दीर्घायु के लिए रखती हैं 'कठोर व्रत'

यह त्योहार मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश और राजस्थान में मनाया जाता है।
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हम बात को आगे बढ़ाएं उसस पहले बताना चाहेंगे कि भारतीय नारी को विश्व भर में त्याग-तपस्या पतियों के लिए समर्पण के लिए पहचाना जाता है । हमारा भारत ही ऐसा देश है जिसमें नारी के अनेक रूप समाहित हैं । सदियों से देश में चली आ रही तीज और त्योहारों की परंपरा को आज भी भारत की महिलाओं ने जीवित कर रखा है । बच्चों के लिए मां अपना जीवन भूलकर समर्पित रहती है ।

दूसरी ओर पति के लिए त्याग, तपस्या, समर्पण और दीर्घायु के लिए कठोर व्रत रखने परंपरा का निर्वाहन पूरे मनोयोग से करती हैं । आज हम बात करेंगे हरितालिका तीज व्रत की । यह व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण माना गया है । आज सुहागिन महिलाएं हरियाली तीज व्रत का त्योहार मना रहीं हैं ।

इस दिन सुहागिन महिलाएं पति की दीर्घायु, सुख-समृद्धि और अच्‍छे स्‍वास्‍थ्‍य के लिए निर्जला व्रत करती हैं। यह त्योहार मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, उत्तरप्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान में मनाया जाता है। वहीं भारत के कुछ दक्षिणी राज्यों में इस व्रत को गौरी हब्बा कहा जाता है। हरतालिका तीज को कई जगहों पर तीजा के नाम से भी जाना जाता है ।

हरतालिका तीज भाद्रपद के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाई जाती है । व्रत रखने वाली महिलाओं को इस दिन विशेष नियमों का पालन करन होता है। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के पूजन का विशेष महत्व है । ये व्रत निराहार और निर्जला किया जाता है । तीज व्रत में अन्न, जल, फल 24 घंटे कुछ ग्रहण नहीं किया जाता है, इसलिए इस व्रत का श्रद्धा पूर्वक पालन करना चाहिए।हरितालिका तीज हरियाली और कजरी तीज के बाद मनाई जाती है ।

भगवान शिव और माता पार्वती के पुनर्मिलन के उपलक्ष में मनाया जाता है यह त्योहर---

धार्मिक मान्यता है कि हरि तालिका तीज व्रत भगवान शिव और माता पार्वती यह पुनर्मिलन के उपलक्ष में हमारे देश में मनाया जाता है । कहा जाता है कि माता पार्वती ने शंकर भगवान को पति के रूप में पाने के लिए कठोर तप किया था । माता पार्वती के इस तप को देखकर भगवान शिव ने उन्हें दर्शन दिए और इस दिन पार्वती जी की अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था ।

इस व्रत को रखने के लिए महिलाओं को कड़े नियमों का पालन भी करना होता है । हरतालिका तीज व्रत एक बार शुरू करने पर फिर इसे छोड़ा नहीं जाता है, हर साल इस व्रत को पूरे विधि-विधान से करना चाहिए । इस दिन पूजा सूर्यास्त के बाद प्रदोषकाल में की जाती है ।

सुहागिन भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की बालू रेत और काली मिट्टी की प्रतिमा हाथों से बनाई जाती है । महिलाएं हरियाली तीज पर माता पार्वती को सुहाग की सभी वस्तुएं चाहती हैं । पूजा में शिव जी को धोती और अंगोछा चढ़ाया जाता है । बाद में यह सामग्री किसी ब्राह्मण को दान देना चाहिए । अगले दिन सुबह महिलाएं पार्वती को सिंदूर चाहती हैं और हलवे का भोग लगाकर व्रत खोलती हैं ।

इस दिन व्रत रखने से स्त्रियों को 'अखंड सौभाग्यवती' होने का वरदान प्राप्त होता है

इस व्रत के नाम में हरत का मतलब हरण और आलिका का मतलब सहेली है। इसीलिए इस व्रत का नाम हरतालिका है। क्योंकि उनकी सहेली माता पार्वती को उनके पिता के घर से हर ले आई थीं। कहते हैं कि जो भी सौभाग्यवती स्त्रियां इस दिन व्रत करती हैं, उन्हें अखंड सौभाग्यवती होने का वरदान प्राप्त होता है। महिलाओं के लिए इस व्रत का प्राचीन काल से ही बहुत अधिक महत्व रहा है।

माना जाता है कि इस व्रत के प्रभाव से कई सौभाग्यवती स्त्रियों ने अपने पति के प्राणों की रक्षा की है। यही नहीं कुंवारी कन्याएं भी अच्छे वर की कामना के लिए ये व्रत रखती हैं । कहा जाता है कि अगर महिलाओं ने एक बार हरितालिका तीज का व्रत शुरू कर दिया तो इसे हर साल ही रखना होगा। अगर किसी कारणवश व्रत को छोड़ना चाहती है तो उन्हें उद्यापन करना होगा ।

इस व्रत में भूलकर भी सोना नहीं चाहिए। व्रती महिलाओं को रात भर जागकर भगवान शिव का स्मरण करना चाहिए। इस दिन खुद तो सोलह श्रृंगार करने होते हैं साथ ही सुहाग का सामान सुहागिन महिलाओं को वितरित भी करना होता है।

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