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वफ़ाओं की दुनिया बसाने चले थे...
वफ़ाओं की दुनिया बसाने चले थे
कई ज़ख़्म दिल में खिलाने चले थे
मगर दिल तो बस आपका हम सफ़र था
मेरे साथ कितने ज़माने चले थे
यकायक हुआ यूँ कि याद आ गये तुम
क़दम जब मेरे डगमगाने चले थे
खबर कब थी तनहाइयाँ मुंतज़िर हैं
मेरे साथ लम्हे सुहाने चले थे
वहीं सब तो उनके लबों पर था ऊषा
उन्हें दास्ताँ जो सुनाने चले थे
-ऊषा भदोरिया