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मुख़्तसर सी ज़िन्दगी है, और क्या...
मुख़्तसर सी ज़िन्दगी है, और क्या
सामने तुम हो, ख़ुशी है और क्या
राज़े उल्फ़त फिर कभी ढूँढेंगे हम
इश्क़ की गहरी नदी है और क्या
कल के ताने और बाने मत बुनो
वक़्त की अंधी गली है और क्या
एक हो तो नाम उसका लीजिये
हादसों की ये सदी है और क्या
ज़ुल्म जब बढ़ जायेंगे आयेगा वो
ये कहानी भी सुनी है और क्या
दर्द कैसे रूह पे जम सा गया
आँसुओं की कुछ कमी है और क्या
आदमी अब क़ैद मोबाइल में है
ज़िन्दगी बाहर खड़ी है और क्या
कैसे कह दे थक गयीं हैं धड़कनें
दिल की भी उलझन बड़ी है और क्या
है पुरानी वैसे तो दुनिया बहुत
जीने की हसरत नई है और क्या
-समीर 'लखनवी'