Your Space
तुझमें डूबा तो बहुत देर में बाहर निकला ...
ज़िन्दगी क़द ये तेरा अक्स से बढ़कर निकला
तुझमें डूबा तो बहुत देर में बाहर निकला
जीतना हारना सब उसकी रज़ा पर मुमकिन
अपनी नज़रों में तो हर शख़्स सिकंदर निकला
इश्क़ इक बूंद ही काफ़ी है असर करने को
लाख इंसाँ में हो नफ़रत का समंदर निकला
मिल गया जो , है नहीं ख़ुश अभी कोई उसमें
जो नहीं है वही हर ग़म का मुक़द्दर निकला
जब से अरमान को चक्खा है ज़ुबां पर अपनी
फिर ये चादर से कभी पांव कभी सर निकला
खुल के बच्चों की तरह प्यार करो फिर सबसे
उम्र का खेल हो जब साठ या सत्तर निकला
-समीर 'लखनवी'
(लेखक रेडियो 92.7 Big Fm में क्लस्टर प्रोग्रामिंग हेड हैं)