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जब तक मिरे हिसाब में उसकी कमी रही...
जब तक मिरे हिसाब में उसकी कमी रही
तब तक मिरे ख़्याल में दुनिया बनी रही
मिलना तो उससे यार था रुसवाई का सबब
अहसास बनके दिल में यूँ बरसों जमी रही
मेले में हाथ छोड़ के जाना ही है चलन
आंखों में उसकी याद की बेशक नमी रही
हासिल नही है कुछ भी तो बेवजह क्यूँ चले
ये सोचकर ही दिल कि ये धड़कन थमी रही
उठकर गया है कौन भला किसको क्या ख़बर
दुनिया तो महफ़िलों में ही अपनी लगी रही
आई 'समीर' नींद न आंखों में रात फिर
कमबख़्त जाने कौन सी हसरत जगी रही
-समीर 'लखनवी'