एक दौर में हज़रतगंज काफी हाउस ब्रिटिश सरकार से लड़नेवालों नौजवानों का अड्डा हुआ करता था
मशहूर शायर अली सरदार जाफरी और उनके खास दो दोस्त सिब्ते हसन और मजाज़ आजादी से पहले काफी हाउस में बैठ कर ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ पर्चे निकालना और अखबार निकालने का काम करते थे। इनके साथ अखिलेश मित्तल और छात्र नेता जो कम्युनिस्ट भी थे इब्ने हसन भी रहते थे।
तीन खास दोस्त मुनीश नारायण सक्सेना, जो बाद मैं हिंदी और उर्दू ब्लिट्ज के संपादक बने और कैफ़ी आज़मी और मेहदी साहब वैसे तो कचहरी रोड पर रहते थे लेकिन अड्डा काफी हाउस में बनाए हुए थे। डा जेड ए अहमद और के एम अशरफ जब भी इलाहाबाद से आते थे वे भी काफी हाउस ज़रूर जाते थे।
बेगम हमीदा हबीबुल्ला ने बताया कि आज़ादी से पहले उनकी ननद तजीन हबीबुल्लाह भी, जिनके तेवर बहुत इंकलाबी थे और लखनऊ यूनिवर्सिटी की छात्र संघ की अध्यक्ष रह चुकी थी, अपनी मंडली के साथ कॉफी हाउस जाती थी।
बेगम हमीदा हबीबुल्ला ने बताया था कि उनको रफी अहमद किदवई की बहन ने बताया था कि अगर राजनीति में जाना हो तो काफी हाउस में बैठना शुरू करो। उनकी सलाह मानकर जब बेगम साहिबा ने काफी हाउस जाना शुरू किया तो उनको डा जेड ए अहमद ज़रूर मिलते थे और काफी पी जाती थी।
राम आडवाणी जी भी मुझे बताया कि जब वे शिमला में थे तो वहां काफी हाउस जाते थे और जब वे लखनऊ में रहने लगे तो आज़ादी से पहले से काफी हाउस में बैठते रहे। बाद में वे अपने मित्र बीके मिश्रा आईएएस के साथ जाते थे। लखनऊ काफी हाउस ने आज़ादी की लड़ाई में एक अहम हिस्सा निभाया जहां बैठकर नवजवानों ने ब्रिटिश हुकूमत की खिलाफ लड़ाई लड़ने की योजनाएं बनाई।